बुधवार, 3 अक्तूबर 2007

दीपावली

भारत के सभी त्योहारों में दीपावली की महत्ता और लोकप्रीयता किसी भी पर्व को प्राप्त नहीं । कार्तिक की अमावस्या को मनाया जाने वाला ये पर्व असंख्य मोमबत्तियों,रंगीन-बल्बों, दीपमालाओं से अमावस्या के अंधेरे को दूर देता है।

इसपर्व के साथ अनेक पौराणिक कथायें जुड़ी हैं। रामचन्द्र जी का वनवास से आगमन , युधिष्टिर का राजसूयी यज्ञ आदि कुछ ऐसी कहानियां हैं। आज इसके साथ कुछ आधुनिक कारण भी जुड़कर इसके महत्व को बढ़ा रहे हैं ।

इस पर्व का आर्थिक महत्व भी है। हमारा देश कृषि प्रधान देश है और शीत काल के प्रारम्भ की सूचना दे कर दीपावली किसानों के व्यवसाय को प्रभावित करता है। घरों और दुकानों की लिपाई पुताई होती है। बाज़ार चमकने लगते हैं, घरों से पकवानों की महक उठती है, मिठाइयों व खिलौनों की दुकानों पर भीड़ जमा हो जाती है। इस तरह दिवाली स्वच्छ्ता और स्वास्थ्य का भी उत्सव बन गया है।

यह हमारा राष्ट्रीय पर्व के साथ साथ उल्लास, आर्थिक और प्रगति-सूचक पर्व भी है। देश और जाति की समृद्धि का प्रतीक यह पर्व अति मनोहर व महत्वपूर्ण है।

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