मंगलवार, 9 अक्तूबर 2007

परिश्रम का महत्त्व

हर मानव की कुछ इच्छाएँ व आवश्यकतायें होती हैं। वह सुख शान्ति की कामना करता है, दुनियाँ में नाम की इच्छा रखता है।किन्तु कलपना से ही सब कार्य सिद्ध नहीं हो जाते। इसके लिये परिश्रम करना पड़ता है। जैसे सोये हुए शेर के मुख में पशु स्वयं ही प्रवेश नही करता उसे भी परिश्रम करना पड़ता है, वैसे ही केवल मन की इच्छा से काम सिद्ध नही होते उनके लिये परिश्रम करना पड़ता है। परिशम ही जीवन की सफलता का रहस्य है।

परिश्रम के बल पर मानव अपने लक्ष्य तक पहुँच सकता है। एक आलसी व अकर्मण्य मानव कभी अपना लक्ष्य नहीं प्राप्त कर सकता।भाग्य के सहारे बैठने से कार्य सम्पन्न नहीं होते। विद्यार्थी वर्ग को भी परीक्षा में सफलता पाने के लिये अटूट श्रम करना पड़ता है।मानव परिश्रम से अपने भाग्य को बना सकता है ,कहा जाता है कि ईश्वर भी उन्ही की मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं।

मानव का शारीरिक व मानसिक विकास भी परिश्रम पर निरभर करता है। आधुनिक मनुष्य वैज्ञानिक यंत्रों का पुजारी बनता जा रहा है।परिश्रम की ओर से लापरवाही इसमें घर करती जा रही हैं। नैतिक पतन हो रहा है जिससे अशांति फैलती जा रही है। फलस्वरूप समाज और रष्ट्र की प्रगति के लिये भी परिश्रम आवश्यक है।

सच्चे सुख व विकास के लिये परिश्रम के महत्त्व को समझना अत्यन्त आवश्यक है।

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