मंगलवार, 16 अक्तूबर 2007

अनुशासन

आजकल के तेज़-रफ़तार ज़माने में, देखा जा रहा है कि युवाओं में अनुशासन हीनता बढ़ती जा रही है। आजकल के युवा, माता, पिता, गुरू तथा अपने से बड़ों का भी आदर करना आवश्यक नहीं समझते। वे यह भूल गये हैं कि अनुशासन ही सफ़लता की कुंजी है। अनुशासन केवल आपसी सम्बंधों में ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में होना चाहिये। यदि मनुष्य खान-पान पर अनुशासन रखे तो स्वास्थ्य अच्छा रहता है, यदि पढ़ाई में अनुशासन रखे तो बुद्धि प्राप्त होती है, और यदि मनुष्य अपने जीवन के हर क्षेत्र में अनुशासन रखे, तो वह सफ़लता प्राप्त करता है।

आजकल के स्कूल और विद्यालयों में, नैतिक शिक्षा कि कमि के कारण, युवा पीड़ि, अनुशासन के महत्त्व को नहीं समझ पाई है। अनुशासन की शिक्षा, घर से प्रारम्भ होती है। सबसे पहले बालक अपने माता, पिता, भाई और बहनों से अनुशासन सीखता है। उसके बाद, विद्यालय में गुरू से बालक को अनुशासन की शिक्षा प्राप्त होती है। कहा जाता है कि अनुशासन अच्छी शिक्षा और संस्कारों का ही दूसरा नाम है। जिस मनुष्य में शिक्षा और संस्कार न हों, वह तो पशु के समान होता है।

विश्व के सारे धर्म माता, पिता, गुरू तथा अन्य श्रेष्ठ जनों के साथ स्म्मानपूर्ण तथा अनुशासनपूर्ण व्यव्हार की शिक्षा देते हैं। परंतु आधुनिक युग में, लोग इस उपदेश को भुला चुके हैं। आज आवश्यकता है कि हम आने वाली पीढ़ी को अनुशासन के महत्त्व के बारे में बताएँ।

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