मंगलवार, 30 अक्तूबर 2007

सत्संगति

सत्संगति का अर्थ है 'अच्छी संगति' । मानव के लिये समाज में उच्च स्थान पाने के लिये सत्संगति उतनी ही ज़रूरी है जितनी कि जीवित रहने के लिये रोटी ।बुरे व्यक्ति का समाज में बिलकुल भी सम्मान नहीं होता और ऐसे व्यक्ति की संगति में रहने से कोई भी अच्छाई की राह से भटक सकता है। अतः हर मानव को कुसंगति से दूर रहना चाहिये।

सत्संगति ही जीवन की सच्ची राह को प्रदर्शित करती है। मनुष्य को अच्छाई-बुराई, ऊँच-नीच, धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य और पाप-पुण्य आदि में चुनने की समझ देती है।कुसंगति मानव को पतन की ओर ले जाती है, यह क्रोध, मोह, काम, अहंकार व लोभ को जन्म देती है। कई बार तो कोई बुराई न होने पर भी बुरी संगति की वजह से मनुष्य को दोषी ठहरा दिया जाता है और सत्संगति नकारे व्यक्ति को भी जीवन की सही राह पर धकेल देती है। भीष्म-पितामह,आचार्य-द्रोण और दुर्योधन जैसे वीर पुरुष भी कुसंगति के कारण राह भटक गये थे।इसीलिये हर मनुष्य को चन्दन के वृक्ष की तरह अटल रहना चाहिये जो कि विषैले साँपों से घिरे रहने पर भी सदा महकता रहता है।

सत्संगति कुन्दन है। इसको पाने के बाद काँच के समान मानव भी हीरे की तरह चमक उठता है। अतः आज के युग में प्रगति का यही सही रास्ता है । मानव को सज्जन व्यक्तियों की संगति से जीवन को सार्थक बनाना चाहिये और सदा आदर प्राप्त करना चाहिये।

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