बुधवार, 31 अक्तूबर 2007

मनुष्य की सोचने की ताकत


मनुष्य एक बहुत ही होशियार प्राणी है। कुच्छ 5000 साल पहले ही मनुष्य को आग बनाने के लिये बहुत कष्ट उठाने पडते थे। लेकिन आज वह आन्तरिक्ष में जा रहा है, बहुत तेज़ गाडिया बना रहा है और असम्भव सोचे गये कार्यो को सम्भव कर रहा है। कम्प्युटर भी ऐसा ही एक आविष्कार है।

हमारे और दुसरे प्राणी में बहुत अन्तर है। जब खेती और अन्य कामों के लिये औज़ार बनाने के दिन थे तब मनुष्य बहुत आसानी से यह बना सकता था क्योंकि वह उसका अंगुठा अन्य प्राणी से और भी अच्छे तरह से हिला सकता था । इसी कारण वह सभी कार्य एक अनोखे प्रविन्ता से करता था।

फ़िर जब 15,16,17 और 18 सदियों में अविष्कारो के दिन आये तो मानव ने उसकी बुद्धिमता के अनगिनत उदहारणे पेश किये। न्यूटन के भौतिक-विग्यान के नियम , आय्नस्टाईन के परिकल्पनाओं , डार्विन की जीवन कि विकास की कल्पना और एदिसन की बिजली की खोज । यह सब चीजे हमे याद दिलाती है कि हम कहा से कहा तक पहुँच चुके हैं।

आज कम्प्युटर के क्षेत्र में बहुत प्रगति हो चुकि है । कौन जाने हम और कितने नये अविष्कार खोज कर बैठे?

-शमिन असयकर

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