बुधवार, 31 अक्तूबर 2007

मनुष्य की सोचने की ताकत


मनुष्य एक बहुत ही होशियार प्राणी है। कुच्छ 5000 साल पहले ही मनुष्य को आग बनाने के लिये बहुत कष्ट उठाने पडते थे। लेकिन आज वह आन्तरिक्ष में जा रहा है, बहुत तेज़ गाडिया बना रहा है और असम्भव सोचे गये कार्यो को सम्भव कर रहा है। कम्प्युटर भी ऐसा ही एक आविष्कार है।

हमारे और दुसरे प्राणी में बहुत अन्तर है। जब खेती और अन्य कामों के लिये औज़ार बनाने के दिन थे तब मनुष्य बहुत आसानी से यह बना सकता था क्योंकि वह उसका अंगुठा अन्य प्राणी से और भी अच्छे तरह से हिला सकता था । इसी कारण वह सभी कार्य एक अनोखे प्रविन्ता से करता था।

फ़िर जब 15,16,17 और 18 सदियों में अविष्कारो के दिन आये तो मानव ने उसकी बुद्धिमता के अनगिनत उदहारणे पेश किये। न्यूटन के भौतिक-विग्यान के नियम , आय्नस्टाईन के परिकल्पनाओं , डार्विन की जीवन कि विकास की कल्पना और एदिसन की बिजली की खोज । यह सब चीजे हमे याद दिलाती है कि हम कहा से कहा तक पहुँच चुके हैं।

आज कम्प्युटर के क्षेत्र में बहुत प्रगति हो चुकि है । कौन जाने हम और कितने नये अविष्कार खोज कर बैठे?

-शमिन असयकर

भारत और अमरीकी सन्स्क्रुती


भारत के रहने वाले हमेशा कहते है कि भारतीय सन्स्क्रुती सबसे सर्वश्रेष्ठ है। हमारी सन्स्क्रुती शायद जग के सबसे पुराने सन्स्क्रुतीयों में से हो लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि हम और सभी सन्स्क्रुतीयो को तुच्छ माने?

भारत के कैई लोग कहते है कि अमरीकी लोग उनकल्चर्ड है पर यह बात मुझे बहुत गलत लगती है। हमे लोगों के सन्स्क्रुतीक इतिहास को नही देखना चाहिये । भारत देश सदियों से इस जग में है। अमरीका की खोज ही 15वी सदी में हुई थी। यह देश में लोग केवल सिर्फ़ 500 साल से रह रहे हैं। इसी कारण उन्हें खुद की सन्स्क्रुती बना ने का समाय ही नही मिला है।

भारत के इतिहास के कयी हिस्से जैसे की महाभारत , रामायण वगैरे हमारे सन्स्क्रुती की बुनियाद को और मजबूत बनाते है।

ऐसे महायुध और और आदर्श कहानियॉ अमरीका में अब तक उतनी नही घडी है । और फ़िर अमरीका में तो जग के हर कोने से लोग रहने के लिये आते हैं। इसी कारण उनकी स्वयं की सन्स्क्रुती नही बन सकती है क्योंकि हर व्यक्ति खुद के देश के सोच विचार लेकर अमरीका आता है।

यह सिर्फ़ मेरी सोच है । मैं किस्सी भी सन्स्क्रुती को दूसरे से महान नही मानता हूँ । हर किसी की खुद कि एक जगह होती है।

-शमिन असयकर

मेघालय

भारत के उत्तर पूर्व में मेघालय एक राज्य है। मेघालय की ऐरिया लगभग 22,500 स्क्वेर किलोमीटर है। यहाँ की जनसँख्या 2,175,000 है साल 2000 के हिसाब से। मेघालय के अत्तर में आसाम है और दोनों के बिच में ब्रम्हपुत्र नदी बहती है। मेघालय के दक्षिण में बान्ग्लादेश है। मेघालय की राज्धानी शिलॉन्ग है। शिलॉन्ग बहुत ही खूबसुरत शहर है और उसकी जनसन्ख्या 260000 है। मेघालय तो पहले आसाम राज्य का हिस्सा था और 1972 में एक स्वातन्त्रिक प्रदेश बन गया।
मेघालय की जलवायु काफ़ी माध्य्मिक है यानि गरमी और ठंडी के बीच में है । यहा बारिश बहुत गिरती है और इधर वार्षिक वर्षा 1200 से.मी. तक होती है जिसके कारण यह राज्य देश का सबसे "गीला" राज्य कहा जाता है । चेरापुंजी, जो राजधानी शिलांग से दक्षिण है, ने एक कैलेंडर महीने में भारत देश में सबसे ज्यादा बारिश का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है । जबकि इसी शहर के पास के गांव मावसिनराम के नाम पूरे साल में सबसे ज्यादा बारिश का रिकॉर्ड दर्ज़ है । राज्य की पहाड़ियां उतनी ऊँची नही हैं । शिलांग पहाड, जिसकी उचाई 1965 मीटर है, सर्वोच्च पहाड है ।
घने जंगल तथा बांग्लादेश की सीमा पर अवस्थित होने के कारण यह एक अच्छा हाय्डिन्ग स्पॉट बन जाता है गुंडो के लिये।
-ॠषित दवे

सिक्किम

भारत का एक पर्वतीय राज्य है। सिक्किम की जनसंख्या भारत के बाकी राज्यों के हिसाब से काफ़ी कम है। सिक्किम एक स्वतन्त्र राज्य था, परंतु अनेक राजकीय कारणों की वजह से वह भारत में शामिल किया गया 1965 में। इसकी वजह से राजतंत्र का अन्त हुआ और भारत की सरकार के नीचे आ गया।
यह राज्य के पश्चिम में नेपाल है और अत्तर तथा पूर्व में चीनी और तिबत है।इसके दक्षिन पूर्व दिशा में भूटान लगा हुआ है। इसके दक्षिन में भारत का वेस्ट बेन्गाल राज्य पड्ता है। यहा अनेक भाषाएं का उपयोग किया जाता है जैसे की अन्ग्रेज़ी, नेपाली। हिन्दी,भूटिया परंतु लिखने के वक्त ज्यादातर अन्ग्रेजी का उपयोग किया जाता है।यहा के प्रमुख धर्म तो हिन्दू और बुद्ध हैं। सिक्किम का सबसे बडा शहर गंगटोक है।सिक्किम की राजधानी भी गंगटोक है। सिक्किम काफ़ी छोटा राज्य है परंतु काफ़ी विभिन्न है। दुनिया की तीसरी सबसे ऊच्ची पर्वत कन्चनजन्गा सिक्किम के उत्तरी दिशा में नेपाल की सीमा पर स्थित है। सिक्किम काफ़ी साफ़ सुथरा राज्य है और प्राक्रुतिक सुन्दरता के हिसाब से भी काफ़ी अच्छा है। इसी कार्ण पर्यट्न के हिसाब से सिक्किम भारत का प्रमुख केन्द्र बनता है।
-ॠषित दवे

मेरे रूम्मेट्स

मेरे रूम्मेट्स थोरे बेवाकूफ़ है। दो दिन पहले मै अपने अपार्टमेंट गई थी दो क्लास के बीच में गई थी। मै खाना खाने के लिए आई थी। मने घर मी घुस के फ्रीज़र खोला और जैसेही खोला दस समान बाहर गिर गए। मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने बहुत कोशिश करी सब सामन को अन्दर रखने के लिए, लेकिन नहीं घुस रह था। तो मैंने वह सब चीज़ फ्रिज मी रख दिया और एक नॉट मी लिखा कि इतने चीज़ फ्रीज़र मी नही भर न चाहिए। जब मै रात को घर पहूची, तीनो लड़कियां गुस्से मी थीं और बोलीं क्यो मै उनका समान फ्रिज मी रख दिया। मैंने बोला कि मै जल्दी में थी और मेरे पास समेह नही था कि मै एक घंटा बैत के उनके सब सामन फ्रीज़र मी रखूँ। वह फिर इतना गुस्सा हो गए कि वह रोने लगे। इसमे मेरी किया गलती थी? लेकिन अब सब ठीक है।

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2007

मित्रता

मित्रता का हमारे जीवन का महत्त्व्पूर्ण हिस्सा होती है मित्र के बिना हर व्यक्ति अकेला है सच्चे मित्र मुश्किल से मिलते हैं। सुदामा और कृष्ण की मित्रता, सच्ची मित्रता का उदाहरण है।

मित्र की संगति का मनुष्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है इस करण हमें सोच समझ कर, अच्छे संस्कार वाले व्यक्ति से ही मित्रता करनी चाहिए। अच्छे मित्र के संगति में मनुष्य अच्छा बनता है और बुरे की संगति में बुरा बनता है।
सच्चा मित्र दुख सुख का साथी होता है और सदैव हमें ग़लत काम करने से रोकता है।

मित्रों में आपस में पारस्परीक सहयोग की भावना होनी चाहिए। मित्रता हमेशा बनी रहे, इसके लिए हमेशा प्रयत्नशील रहना चाहिए। जिस प्रकार पौधे को जीवित रखने के लिए, खाद और पानी की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मित्रता को बरकरार रखने के लिए सहयोग और सहनशक्ति की आवश्यकता होती है। मित्रता में संदेह का स्थान नहीं होता है।

सच्चे मित्र की पहचान मुसीबत में ही होती है अतः मित्रता अनमोल होती है और हमारे सुचारू रूप से चलने में सहायता करती है इसीलिए हमारे ज़ीवन में सच्चे मित्र का होना आवश्यक है।

सुख शांति के साधन

प्रत्येक मनुष्य सुख और शांति में रहना चाहता है, पर किसी को शांति नहीं मिलती। वास्तव में शांति सिर्फ़ ज्ञानी व्यक्ति को सद बुद्धि धारण करने वाले को, और ईश्वर में आस्था रखने वालों को मिलती है।

सुख और शांति मात्र धन दौलत से नहीं मिलती। सुख शांति तो संतोष और विद्या से मिलती है। विद्वान व्यक्ति अभिमान नहीं करता है, और सदैव ही विनम्र होता है। वह किसी को दुख पहुँचाने वाली बात नहीं करता और किसी का अपमान नहीं करता। ऐसा व्यक्ति ही सुख शांती का अर्थ समझता है।

महात्मा बुद्ध और महावीर जी को राज-पाठ के ऐशो-आराम में सुख नहीं मिला इन महाव्यक्तियों को तो दूसरों के दुख को दूर करने में सुख मिला और वे अपना राज-पाठ त्याग कर समाज को सुख शांति का रहस्य बताने के लिए निकल पड़े।

सुख और शांति अपने मन में ही निहित है। हम यदि अपनी इच्छाओं को वश में कर लें, दूसरों की मदद करें सबके प्रति प्रेम भाव रखें और अहंकार न करें तो हम सुख प्राप्त कर सकते हैं। इसीलिए विद्वान व्यक्ति सुख और दुख को समान रूप से अनुभव करता है। सुख और शांति नम्रता धारण करने में है और परोपकार में दीन-हीन के प्रति करूणा का भाव रख़ने में है। सुख और शांती क्षमा करने में है। अक्सर लोगों को अपनी बुराई और दूसरों की अच्छाइयाँ दिखाई नहीं देती जिस दिन मनुष्य को अपनी बुराई दिखाई देने लगेगी, उसका मन सुख और शांति का अनुभव करने लगेगा।

सत्संगति

सत्संगति का अर्थ है 'अच्छी संगति' । मानव के लिये समाज में उच्च स्थान पाने के लिये सत्संगति उतनी ही ज़रूरी है जितनी कि जीवित रहने के लिये रोटी ।बुरे व्यक्ति का समाज में बिलकुल भी सम्मान नहीं होता और ऐसे व्यक्ति की संगति में रहने से कोई भी अच्छाई की राह से भटक सकता है। अतः हर मानव को कुसंगति से दूर रहना चाहिये।

सत्संगति ही जीवन की सच्ची राह को प्रदर्शित करती है। मनुष्य को अच्छाई-बुराई, ऊँच-नीच, धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य और पाप-पुण्य आदि में चुनने की समझ देती है।कुसंगति मानव को पतन की ओर ले जाती है, यह क्रोध, मोह, काम, अहंकार व लोभ को जन्म देती है। कई बार तो कोई बुराई न होने पर भी बुरी संगति की वजह से मनुष्य को दोषी ठहरा दिया जाता है और सत्संगति नकारे व्यक्ति को भी जीवन की सही राह पर धकेल देती है। भीष्म-पितामह,आचार्य-द्रोण और दुर्योधन जैसे वीर पुरुष भी कुसंगति के कारण राह भटक गये थे।इसीलिये हर मनुष्य को चन्दन के वृक्ष की तरह अटल रहना चाहिये जो कि विषैले साँपों से घिरे रहने पर भी सदा महकता रहता है।

सत्संगति कुन्दन है। इसको पाने के बाद काँच के समान मानव भी हीरे की तरह चमक उठता है। अतः आज के युग में प्रगति का यही सही रास्ता है । मानव को सज्जन व्यक्तियों की संगति से जीवन को सार्थक बनाना चाहिये और सदा आदर प्राप्त करना चाहिये।

सोमवार, 29 अक्तूबर 2007

नौकरी का पहला दिन

अगले दिन सुबहे ७:३० बजे ओरिंटेशन के लिए सियाटल जाना पड़ा | सूबे कि याता यात मैं फसे लगा कि समय पर नहीं पहुँच पाऊँगा | १५ मिनट लेट होने के बावजूद ओरेंटेशन हॉल में आने दिया गया मुझे | वैसे तो वहा कुछ खास नहीं हुआ | मेरी तस्वीर खीची गये और मेरा बैज मुझे दे दिया गया | वहाँ पर बड़े होल मैं काफी नए लोग थे जो अपने पहले दिन की शुरुआत के लिए उत्सुकता से इंतज़ार कर रहे थे | इनमे से मैं भी एक था | इन लोगों मैं मानेजर, इंजिनियर , फैक्ट्री वर्कर्स और साफ सफ़ाई करने वाले कर्मचारी एक ही साथ बैठे थे | सब लोग वहा एक समन ही थे | भेद भाव जैसी चीज़ वहा थी ही नही | हॉल मैं अनेक छोटे टेबलों मैं लगभग छे - सात लोग बेठे थे | अपने टेबल पर मेरे स्थान पर मेरे नाम का लिफाफा रखा था जिसमे मेरे अस्सिनेमेंट लेटर और बैज था | इससे ले कर मैं सियाटेल से एवेरेट चला गया | बैज होने के वज़ह से आब मैं अपने बिल्डिंग के अन्दर जा सकता था | वैसे तो मुझे अगले दिन अपने मनेजर को रिपोर्ट करना था पर मैं आपना डेस्क आज ही खोज लेना चाहता था |
वापस एवेरेट जाते वक़्त ऐसा लगा कि भले सियाटेल कितनी भी सुंदर जगहें हो आब मुझे यहाँ नही आना पड़ेगा |
ये रोज़ का रोक टोक और बड़े शेहेर के अन्य झंझट नहीं झेलने पड़ेंगे | आब तो दफ्तर मेरे अपार्टमेंट से मात्र पाँच मिनेट ही की दुरी पर था |

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2007

एवेरेट मैं पहला दिन

वैसे तो मैं शिकगो और न्यू यार्क जैसे बड़े शेहेरों को घूम चूका हूँ परन्तु कभी भी रहा नहीं | यही नहीं पर इस बार सियाटेल जैसे बडे और सुंदर शेहेर मैं मुझे आपना सारा इन्तिजाम खुद ही करना था | दोस्त और रिश्तेदार हजारो मील तक नहीं थे केवल मेरे कालेज के कुछ छात्र जिनसे मुझे एवेरेट के बारे मैं सलाह मिली | सियाटेल की आबादी भी काफी आधिक मालूम पड़ती और पाँच बजे के याता यात में गाड़ी में फेस मुजे इस नए शेहेर की लय कुछ कुछ समझ में आने लगा |
एवेरेट मैं मैंने एक महीने पहले से ही अपार्टमेंट का बंदबस्त कर लिया था , और यही नहीं बलकी अपने कोलेज के दो छात्रों को भी साथ रहने के लिए फिट कर लिया | इस तरेह रहने का खर्चा बिलकुल आधा से भी कम हो गया और आकेलापन भी नहीं महसूस होता | पास ही मैं पुलिस थाना भी था जिस्से देख कर सुरक्षा का महसूस हुआ|
कॉम्पलेक्स के पीछे ही गरोसरी खरीदने के लिए डिपार्टमेंट स्टोर था जिधर पैदल जाया जा सकता था और उसके साथ ही पिक्चर थिएटर, रेस्तौरांत, और अन्य दुकानें थी | इसके अलावे मैं तुरंत आपने काम करने के स्थान, बोयेंग को खोज लेने निकल गया ताकि सुबहे सुबहे जलदी में खोजना नही पड़े| वैसे तो ओरिएनटेशन जो आगले दिन होने वाला था उसके लिए वापस सियाटेल जान पड़ा |
पहला दिन कुछ आजिब ही बीता, न वहाँ कोई फर्नीचर थी न कुछ | केवल खाली कमरे जिनसे एक में मेरे गाड़ी से उतारे गए बक्से | आपने अपार्टमेंट में तीनो लोगों में से सबसे पहले में ही एवेरेट पहुँचा | दूसरा लड़का, जिसका नाम माईकेल था , वेह चार पाँच दिन के बाद पहुँचने वाला था | और तीसरा लड़का, जिसका नाम प्रीत था, उससे तो मुलाक़ात पूरे एक महीनों तक नहीं हुई | इसलिए कि में पहले पहुँचा, फर्नीचर, केबल, इनटरनेट आदि का बंदोबस्त मुझे ही करना पड़ा | वैसे तो मुझे वैसा ही चाहिये था क्योंकि इस तरह सारा महीने के खर्चों का हिसाब किताब का ज़मीदार में था | उनलोगों के साथ रहने के बाद मुझे यकीन हुआ कि मेरा फैसला बिलकुल ठीक था | माइकेल को रोज के रेहेंन सेहेंन के बारे में कम ही मालूम था और प्रीत तो जदातर आपने ही दुनिया मी रहता था | खैर जब तक वेह दोनों अपने अपने रेंट और अन्य खर्चों को समय पर चूका देते, इस मामले मे मुझे उनसे कोई झंझट नहीं मिली |

परिवर्तन ही जीवन है

ब्रह्माण्ड का कण-कण परिवर्तनशील है। हमारे शरीर के पुराने सैल नष्ट हो जाते हैं और उनकी जगह नए सैल ले लेते हैं। यह तो हमारी देह की स्थिति है, हमारी आंतरिक स्थिति में और व्यक्तित्व में भी पल-पल परिवर्तन होता रहता है। मानव पुराने वस्त्र छोड़कर नए वस्त्र धारण करता है, पुराना घर छोड़कर नए घर में जाता है, और भी बहुत सी पुरानी वस्तुओं की स्थान पर नई वस्तुओं की इच्छा करता है। यह परिवर्तन आवश्यक है और जो इसको जीवन से दूर रखना चाहता है वह जीवन को बन्दी के रूप में रखना चाहता है।

जो मानव परिवर्तन का पहले से ही अनुमान लगा लेता है वही अपने आप को परिस्तिथियों के हिसाब से ढालकर सफल होता है। इससे वह सशक्त बनता है। कई बार जीवन मे कुछ ऐसी घड़ियां आ जाती हैं जब कोई नई घतना नहीं घटती,तब ऐसा लगने लगता है कि जीवन स्थिर हो गया है। इससे मानव ऊकता है। परिवर्तन के आने से ही जीवन आगे बढ़ता है फिर चाहे यह परिवर्तन शुभ हो या अशुभ।यही परिवर्तन ही जीवन में नए उत्साह की, नए साहस की लहर लाता है।

परिवर्तन का सामना करने का सर्वोत्तम उपाय है कि उसका स्वागत किया जाए। बीते युग का मोह त्यागने से ही मानव ऐसी स्थिति में आ सकता है।एक पुरुष से पूछा गया कि तुम में ऐसी महान शक्ति कैसे आगयी तो उसका उत्तर था कि वह अपना तनिक भी समय बीते वक्त के पछतावे में नष्ट नहीं करता । पुराना जाता है तभी नया आ सकता है ,यही संसार का नियम है,सृष्टि का नियम है।

बुधवार, 24 अक्तूबर 2007

क्रिकेट का खेल

भारत मे क्रिकेट का खेल बहुत लोकप्रिय है | भारत मे क्रिकेट की शुरुआत ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान हुई | क्रिकेट का खेल एक गोल मैदान पर खेला जाता है| मैदान के बीच एक भूरे रंग का क्रिकेट िपच होता है| इस िपच के दोनो त्रफ़ िवकेट लगे होते है| िवकेट तीन लकड़ी के डंडो से बना होता है | िपच की लंबाई लगभग 22 गज़ होता है | क्रिकेट एक टीम खेल है | एक टीम में 11 लोग होते है | एक टीम मे 6 बल्लेबाज़, 4 गेंदबाज़ और एक िवकेटकीपर होते है | क्रिकेट का विश्व कप हर चार साल बाद खेला जाता है | भारत ने आजतक एक विश्व कप जीता है| भारत का पहला विश्व कप िवजय 1983 में हुआ था |

क्रिकेट का खेल तीन तरीको से खेला जाता है | इनमे से पहला है टेस्ट मैच | टेस्ट मैच पांच िदनो तक खेला जाता है | एकदिवसीय क्रिकेट एक िदन में खेला जाता है | एकदिवसीय क्रिकेट मे हर टीम को 50 ओवर खेलने पडते है | ओवर का यह मतलब होता है की गेंदबाज़ 6 बार बल्लेबाज़ की ओर गेंद फेंकता है | इसके अलावा आजकल 20-20 क्रिकेट काफ़ी लोकप्रिय हो रहा है | 20-20 क्रिकेट में हर टीम को 20 ओवर खेलना होता है |

शाहरुख़ ख़ान- भाग 2

उनकी पहली फ़िल्म “दीवाना’ काफ़ी सफ़ल थी पर उनकी दूसरी फ़िल्म माया मेमसाब बहुत लोगों को पसन्द नहीं आयी। 1993 में उन्होंने बाज़ीगर बनायी और यह फ़िल्म मुझे भी बहुत पसन्द है।इसी साल में उन्होंने डर और कभी हाँ कभी ना बनायी और दोनों फ़िल्में भी काफ़ी सफ़ल हुई।1995 में उनकी फ़िल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जायेन्गे बॉलिवूड की आज तक की सबसे सफ़ल फ़िल्म रही है और 12 सालों से सिनेमाघरों में चल रही है।
१९९७ में उन्होंने यश चोपड़ा की दिल तो पागल है, सुभाष घाई की परदेश, और अज़ीज़ मिर्ज़ा की येस बॉस जैसी फिल्मों के साथ सफलता पायी और बॉलिवुड में अपनी एक छाप बनायी। 1998 में ही साल उन्हें मणि रत्नम की फ़िल्म दिल से में अपने अभिनय के लिए फ़िल्म समीक्षकों से काफ़ी तारीफ़ मिली और यह फ़िल्म भारत के बाहर काफ़ी सफल रही।1998 में उन्होंए करण जोहार की पहली फ़िल्म कुछ कुछ होता है में काम किया जो बहुत हि सफ़ल रही। इस फ़िल्म के बाद करण जोहर की हर फ़िल्म में उन्होंए काम किया और सभी सफ़ल रही है। 2001 की कभी खुशी कभी गम, 2004 की कल हो ना हो और 2006 की कभी अल्विदा ना कहना।
अगले हफ़्ते में यह कहानी खत्म करुंगा ।
-ॠषित दवे

शाहरुख़ ख़ान- भाग 1

हिन्दी फ़िल्मों और बॉलीवुड के एक प्रसिद्ध अभिनेता और निर्माता हैं। उन्हें बॉलिवुड के बाद्शाह के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने अपने अभिनय का प्रारंभ १९८० के दशक में कई टेलीविसन शोस से किया| उन्होंने फ़िल्म दीवाना (१९९२) के साथ बॉलीवुड में एक सफल शुरुआत की और तब से वह कई कामियाब फिल्मों का हिस्सा रह चुके हैं| अपने कैरियर में वेह अब तक ६ फ़िल्मफ़ेयर बेस्ट ऍक्टर अवार्डस जीत चुके हैं|
उनके पिता ताज मोहम्मद ख़ान सैनिक थे और उनकी माँ लतीफ़ा फ़ातिमा मेजर जनरल शाहनवाज़ ख़ान की बेटी थी। उनकी एक बहन भी हैं जिसका नाम है शहनाज़।उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई दिल्ली के सेंट कोलम्बा स्कूल से । इसके उपरांत उन्होंने हंसराज कॉलेज से इकोनॉमिक्स की डिग्री प्राप्त की।
1991 में वह मुम्बई आ गये और उनकी शादी गौरी खान के साथ हुई।उनको एक बेटा आर्यन और एक बेटी सुहाना है।उन्होंने अभिनय की शिक्षा प्रसिद्ध बॅरी जॉन से दिल्ली में ली।उन्होंने अपना कैरियर में दूरदर्शन के "फ़ौजी" से शुरू किया। उसके बाद उन्होंने और कई सीरियलों में अभिनय किया जिनमे "सर्कस" सबसे प्रसिद्ध था। यह शो के निर्देशक अज़ीज़ मिर्ज़ा थे जो कि शाहरुख खान की भी कई फ़िल्में बना चुके है और वे दोनों काफ़ी अच्छे दोस्त भी हैं।
-ॠषित दवे

आउटसोर्सिंग

तकनीकी विकासों से आज दुनिया कि किस्सी भी कोने में बसे व्यक्ति से सिर्फ बात करना ही नहीं , परन्तु मिलना भी आसान हो गया है। कुच्छ ही मिन्टो में हम दुनिया के एक कोने से दुसरे कोने तक पहुच सकते है। इन तकनीकी विकासों ने वक़्त और मीलो के अर्थ को भस्म कर दिया है। केमरा द्वारा एक दुसरे को देखकर ऐसा महसूस होता है कि दोनो देशो के बीच एक मेज या कुर्सी का फासला है - यही है तकनीको का कमाल!

आज कल व्यापार में प्रतियोगिता इतनी बड़ गयी है कि पैसों के मामलो में बहुत होशियार रहना पड़ता है । इसलिये अमरीका और इंग्लैंड जैसे देशो में व्यापर करने वाले दुसरे देशो से सस्ते में अपना काम निपटा लेते है और कम दाम पर व्यापारी करते हैं। इस तरह कि व्यापर को अंग्रेजी में आउटसोर्सिंग कहते हैं। कुछ महीनों पहले मैंने एक ऐसे ही व्यापर करने वलुए कम्पनी में काम किया - सिस्को स्य्स्तेम्स। हम सुबह को काम पर जाते थे लेकिन हर भुध्वार के शाम ठीक आठ बजे हमारा बंगलोर में बसे एक कम्पनी के साथ बैठक होती थी - मेरे काम करने वाले कम्पनी से दी चार व्यक्ति ने भारत जाकर उनसे मुलाक़ात कर ली थी और कम पसंद आने पर उनको काम सौप दी थी ।

आउटसोर्सिंग आज कि दुनिया में बहुत महत्वपूर्ण हैं और भाग लेने वाले दोनो देशो कि लिये लाब्दार हैं।

हिन्दी गाने

घर छोड़ यहाँ महत्मविद्याल्या आने के बाद मैंने जितना हिन्दी गाना पसंद करना शुरू किया है, वह पहले से बहुत गुना ज्यादा है। अजीब बात है कि जहा हिन्दी कलाकारों की आवाज हर घर ग्राहस्ती में शामिल होता हैं, मैं उस ही देश में न तो हिन्दी गाने पसंद करता था और ज्यादा सुनता भी नहीं था । यहाँ आने के बाद, मैं हुम्शे हिन्दी गानों के गीत गुनगुनाता रहता हूँ और अपने दोस्तो कि साथ संगीत का मजा लेता हूँ। हर सोमवार कि रात जब हम दोस्त लोग मौज मस्ती करने के लिए मिलते हैं तो गानों का बंदवस्त जरूर होता हैं - हम में से एक अपना कंप्यूटर ले आकर पुराने और नए गानों को छेड देता हैं। हिन्दी गानों कि बात ही कुछ और है - इतनी मधुर, मतलब में दिल को चूने देने वाली - पता नहीं मैंने अब तक इन गानों को पसंद क्यों नहीं कीया! अंत में मैं अपने पसंदी का एक गाने के कुछ शब्दों को यहाँ प्रस्तुत करना चाहूँगा -

मेरे मन यह बता दे तू
किस और चला है तू
क्या पाया नहीं तुने
क्या धुंद रहां है तू
जो हैं अनकही, जो हैं उन्सुनी,
वह बात क्या है बता, मितवा....

वक़्त

मेरा इतना काम है कि मै सो नही पा रहीं हूँ। मुझे बहुत परेशानी हो रही है। सब क्लास्सों में एक न एक प्रोजेक्ट देना है। मै दो दिन से नही सो पाई हूँ। अगले हफ्ते और कठिन है। लग रह है कि मैन जादा क्लास ले लिए हैं। मेरा पास वक़्त ही नही है कि मै बैठके टीवी देखूं । इस सब में मेरी गलती भी है। जब सैटरडे और सन्डे आता है तो मुझे कुछ करने कि इच्छा ही नही होती है। सिर्फ दोस्तों के साथ मिलने कि इच्छा होती है और सोने कि इच्छा होती है। वीकएंड मी कुच्छ काम करने में तबेत खराब होती है। अगर वक़्त को ठीक तरह से बाटो, तो रात रात जागना नहीं पड़ेगा । येः मै सीख चुकी हूँ, लेकिन तब्भी मुक्शील होती है। कॉलेज आसाही है और मै ही सिर्फ नहीं हूँ जो सो नहीं रहा है। जो लोगों को वक़्त बाटना आता है, उन लोगों को इतनी मुश्किलें नहीं होती है।

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2007

िदल्ली शहर

िदल्ली शहर भारत की राजधानी है | िदल्ली से पहले भारत की राजधानी कोलकाता हुआ करती थी |िदल्ली शहर उत्तरी भारत में स्थित है | िदल्ली शहर िक आबदी 140 करोड़ के आस - पास है | इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पश्चिम में यमुना नदी है, जिसके किनारे यह बसा है | मुंबई के बाद दिल्ली भारत के सबसे बड़े व्यापारिक महानगरो में से है |

िदल्ली के पास काफ़ी शहर है | गुड़गाँव, फ़रीदाबाद और घािज़याबाद जैसे शहर िदल्ली से थोड़े िह दूर में है | इसी कारण आजकल िदल्ली में काम करने वाले लोग ज़यदातर इन शहरो में रहना पसंद करते है | इसके अलावा िदल्ली शहर में घूमने के िलये काफी जगह है | इनमे से कुछ प्रसिद्ध जगहे जंतर - मंतर, संसद भवन, लाल-क़िला, इन्डिया गेट और लोटस टैम्पल है | िदल्ली शहर में भारत के काफी प्रसिद्ध विद्यालय और विश्वविद्यालय भी है |

मेरा तो यह मानना है िक िदल्ली जैसी शहर सबको एक बार तो देखनी चािहये |

गुरू

जो हमारी अज्ञानता को दूर कर हमारे जीवन में ज्ञान रूपी प्रकाश लाता है, वही हमारा गुरू होता है। बालक के प्रथम गुरू उसके माता पिता होते हैं, जो बालक को सर्वप्रथम शिक्षा प्रदान करते हैं। तत्पश्चात, बालक विद्यालय जाता है, और उसके ज्ञान का विकास उसके गुरू के द्वारा होता है। विद्यालय में गुरू छात्र को सुशिक्षा, सुसंस्कार और विनम्रता तो प्रदान करते ही हैं, साथ में उसे अनेक विषयों का ज्ञान भी देते हैं, जिस से आगे चल कर छात्र अपना भविष्य चुन सकें। गुरू से अर्जित ज्ञान से ही कोई इन्जिनियर, कोई डाक्टर, कोई नेता, तो कोई अभिनेता बनता है। इस प्रकार लोग अपनी रुची के अनुसार अपना भविष्य चुन सकते हैं।

ईश्वर द्वारा प्राप्त गुणों का विकास गुरू के द्वारा ही होता है। संगीत, कला, तथा विज्ञान के क्षेत्र में जो बहुत आगे पहुच चुके हैं, उनकी सफ़लता भी उनके गुरू के कारण ही है। प्राचीन काल में तो गुरू को अत्यंत आदरणीय माना जाता था। जब महाभारत में अर्जुन से उसका परिचय मांगा गया था, तो उसने कहा कि वह द्रोण-शिष्य अर्जुन है, और, केवल गुरू ही छात्र का परिचय होता है।

बिना गुरू कोई भी यश नहीं प्राप्त कर सकता। गुरू हमारे ज्ञान को दिशा प्रदान करते हैं। गुरू हमारी योग्यता को पहचानते हैं, और उस ही के अनुसार हमें कार्य करने की प्रेरणा देते हैं। गुरू की महिमा का जितना बखान किया जाए, कम है।

परिश्रम का फल

परिश्रम का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। मनुष्य परिश्रम के द्वारा कठिन से कठिन कार्य सिद्ध कर सकता है। परिश्रम अर्थात मेहनत के ही द्वारा मनुष्य अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। कोई भी कार्य केवल हमारी इक्षा मात्र से ही नहीं सिद्ध होता है, उसके लिये हमें कठिन परिश्रम का सहारा लेना पड़ता है।

परिश्रम के ही बल पर मनुष्य अपना भाग्य बना सकता है। परिश्रम केवल अकेले मनुष्य के लिये ही नहीं लाभदायक होता है। हम देख सकते हैं, कि जिस देश के लोग परिश्रमी होते हैं, वह पूरा देश तरक्की प्राप्त करता है। अमरीका, चीन, रूस और जापान, इसके उदहरण हैं। छात्रों के जीवन में तो परिश्रम का बहुत अधिक महत्त्व होता है। हम देख सकते हैं कि परीक्षा में वे ही छात्र सफ़ल होते हैं जो परिश्रमी होते हैं। प्राचीन ग्रंथ, महाभारत में भी गुरू द्रोण का शिश्य अर्जुन, कठिन परिश्रम के ही द्वारा सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन सका। भारत देश की स्वतंत्रता भी गांधी जी और नेहरू जी जैसे महापुरुषों के परिश्रम का फल है।

कुछ लोग सफ़लता का राज़, परिश्रम की जगह भाग्य को मानते हैं। उनका कहना होता है, कि भाग्य में जो लिखा होता है, उसे टाला नहीं जा सकता। यह बात असत्य है। मनुष्य यदि परिश्रम करे, तो होनी को भी टाल सकता है। किसी ने सत्य ही कहा है, कि परिश्रम ही सफ़लता की कुंजी है।

भारत का राष्ट्रीय खेल

भारत का राष्ट्रीय खेल हाकी है। इसे अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हो चुकी है। इसका श्रेय श्री ध्यानचन्द जी को जाता है।भारतीय खिलाड़ियों ने विश्व में अपने देश का नाम उज्ज्वल किया है।

हाकी का प्रारम्भ आज से 4000 वर्ष पूर्व ईरान में हुआ था। इसके बाद कितने ही देशों में इसका आगमन हुआ पर उचित स्थान न मिल सका। अन्त में इसे भारत में विशेष सम्मान मिला और यहाँ का यह राष्ट्रीय खेल बना । हमारे देश में इसका आरम्भ सौ वर्ष से कम ही हुआ है। इससे पूर्व यह देश के विभिन्न भागों में विभिन्न नामों से प्रचलित था।

हमारे देश में यह खेल नियमित रूप से सबसे पहले कलकत्ता में खेला गया। हमारी टीम का सर्वप्रथम वहीं संगठन हुआ। 26 मई को सन 1928 में भारतीय हाकी टीम प्रथम बार ओलिम्पिक खेलों में सम्मिलित हुई और विजय प्राप्त की। सन 1932 में भारतीय टीम ने अमरिकी खिलाड़ियों को एक के विरुद्ध 24 गोलों से हराया। इस समय टीम के कप्तान थे श्री ध्यानचन्द । सन 1962 में कांस्य पदक और 1980 में स्वर्ण पदक प्राप्त किया और देश का नाम ऊँचा कर दिया।

हाकी खिलाड़ियों की शारीरिक चुस्ती, मानसिक स्फूर्ति और उनका खेल के प्रति प्रेम उनके विकास की सीढ़ी बन गया है। इनसे हमें आत्मानुशासन व एकता से कार्य करने की शिक्षा मिलती है।इनकी कर्तव्यपरायणता से सभी को सीख लेनी चाहिये।

अनुशासन

अनुशासन ही एक ऐसा गुण है, जिसकी मानव जीवन में पग पग पर आवश्यकता पड़ती है। अतः इसका आरम्भ जीवन में बचपन से ही होना चाहिये। इसी से ही चरित्र का निर्माण हो सकता है। अनुशासन ही मनुष्य को एक अच्छा व्यक्ति व एक आदर्श नागरिक बनाता है।

वास्तव में अनुशासन-शिक्षा के लिये विद्यालय ही सर्वोच्च स्थान है। विद्यार्थियों को यहाँ पर अनुशासन की शिक्षा अवश्य मिलनी चाहिये। उन्हें गुरुओं की आज्ञा का सदा पालन करना चाहिये। अनुशासनप्रिय होने पर ही विद्यार्थी की शिक्षा पूर्ण समझी जा सकती है। पाश्चात्य देशों में भी शिक्षा का उद्देश्य जीवन को अनुशासित बनाना है। अनुशासित विद्यार्थी अनुशासित नागरिक बनते हैं, अनुशासित नागरिक एक अनुशासित समाज का निर्माण करते हैं, और एक अनुशासित समाज पीढ़ियों तक चलने वाली संस्कृति की ओर पहला कदम है।

अनुशासन का पाठ वास्तव मे प्रेम का पाठ होता है ,कठोरता का नहीं। अतः इसे प्रेम के साथ सीखना चाहिये । बालक को अनुशासन का पाठ पढ़ाते समय कु्छ कठोर कदम उठाने आवश्यक हैं परन्तु इससे रहित रखकर हम बालक को अवश्य ही अवनति की ओर ढकेल देंगे। गाँधीजी ने भी कहा था कि अनुशासन ही आज़ादी की कुंजी है।

बुधवार, 17 अक्तूबर 2007

एक सुनेहरा सफ़र ' भाग ९ '

सियाटल शेहेर को देख कर हमे बेहद ख़ुशी हुई | हम दोनों ही इस जगह पहले कभी नहीं आये थे | सूरज ढल रहे थे और थोड़ी बारिश भी हो रही थी | वर्षा देख कर हम पक्का कह सकते थे कि हम सचमुच सियाटल पहुँच गये है | लोग कहते है कि सितंबर होने पर सियाटल मैं पुरे पांच से छे मासों तक बारिश का अनुमान होता है | छतरी पैक कर लिया था हमने वो काम आ ही गया | थके थके हम फोर्थ स्ट्रीट के किसी होटल मैं जा घुसे | इस थकन के बावजूद हम तुरंत सियाटल घूमने के लिए उतावले थे | होटल मैं हाँथ मुह धो कर छतरी लिए हम निकल गये | उस सोमवार के दिन सब दुकान आठ बजे ही बंद हो गये थे | इससे देख माई बहुत खुश नहीं थी और ऊपर से थोरी ठंड और बारिश | हम कुछ ही देर मैं वापस चले गये | माई का मूड उतर सा गया | सीयातल के शापिंग सेंटर से उसे बहुत उम्मीद थे | उसे मनाने के लिए मैं उसे किसी आचे चीन रेस्तोरांत ले गया | गरमा गरम खाना खा कर हम वापस होटल चले गये |
अभी १० ही बजे थे पर आज जल्दी सोना थे क्योंकि माई का मिशिगन वापसी का फ़्लाइट सवेरे ११ बजे था | आज कल के आतंकवादियों के वज़ह से हवाई अड्डा कि सुरक्षी बहुत आधिक बढ गई है और हमारा वहाँ फ़्लाइट के छूटने के काम से काम २ घंटे पहले पहुंचना था | और नई शेहेर मैं ये भी पता करना था की हवाई अड्डा कैसे पहुँचते है | खैर ये सब के बावजूद सब ठीक से हो गया और मैं माई से विदा ले कर सियाटल से २० मील उत्तर के ओर एवेरेट चला गया | इस्सी शेहेर मैं बोयेंग कम्पनी मौजूद थी जहाँ मुझे गर्मियों के लिए काम करने चुना गया |

एक सुनेहरा सफ़र ' भाग ८ '

वाशिंग्टन के इन खुली ज़मिनो मे वो मज़ा नही था जो हमे आइडहो, मोंटाना और वैयोमिंग के पहड़ों के बिच मिल | मैप मे आगे का रास्ता देकते समय मालुम हुआ कि आगे दो घाटियाँ आने वाली है जिन्हे हमे पार करना पड़ेगा | ये घाटियाँ आईडहो के रोक्की पर्वतों के मुक़ाबले मैं छोटी ज़रुर थी | ऊपर पहुँचने पर निचे देखने के लिए गाड़ी रोक दी | इन घाटियों के बीच एक सुंदर सा झील दबा हुआ था जिसके बहुत से तस्वीर लिए हमने | उस जगह कई गाड़ियाँ रुकने लगी घटीं की सुन्देर्ता का आनंद लेने | शाम के चार बज रहे थे और वेह एक शण मैं तीन हो गये | यह इस लिए क्योंकि हम माऊन्टेन स्टैंडर्ड टाईम वाले भाग मैं घुस गये थे | यही वापस मिशिगन जाने पर एक घंटा पाने के वाजेह खोना पड़ेगा |
चलते चलते छे बज गये और ट्राफिक और आबादी बढने लगी | इससे हमे लगा कि हम पास ही है , और मैप के अनुसार भी | आई -९० कुछ ही मीलों मैं खतम होने वाला था और हमारा उसके साथ का चार दिनों का साथ भी | लेक वाशिंग्टन को पुल दुआर पार कर हम मेर्सेर टापू पर होते हुए उत्तर सियाटल पहुँच गये | सियाटल मे हमारा स्वागत तब ही हुआ जब हमने वहाँ का सबसे मशहूर स्पेस नीडल देखा | लोग कहता है कि सियाटल मैं स्पेस नीदल घूमे बग़ैर नही आना , वो सियाटल घुमा हुआ नही कहलाता है |

भारत और अमरीका- क्या एक जैसे है?


चार साल पहले जब मै अपनी आई-आई-टी की पढाई कर रहा था तब मेरे मन में भारतीय पढाई-लिखाई के प्रति बहुत नफ़्रत जग उठी। तीन लाख विद्यार्थी इस परिक्षा का सामना करते थे और सिर्फ़ 4000 को इसमें जगह मिलती थी। फ़िर जब मैने अमरीका की ओर देखा तो मुझे इस बात का एह्सास हुआ कि यह एक जगह है जो सबको मौका देती है। मुझे गलत मत समझिये।भारत मेरे लिये सबसे प्रीय है लेकीन इसका मतलब यह नहीं होता कि मैं उसके दुर्गुणों को नहीं देखू। मेरे हिसाब से पढाई-लिखाई में भारत अभी बहुत पीछे है।

चलो खेल कूद की बात लेते है। ओलिम्पिक खेलों में अमरिका ढेर सारे स्वर्ण्पदक हर बार ले जाती है। भारत ने पिछले खेलों में सिर्फ़ एक पदक जीता है। लेकिन इसके दोश हम भारतीय खिलाडियों को नही दे सकते है।भारतीय सरकार सिर्फ़ क्रिकेट के लिये पैसे इकट्ठ करती है और बाकी अन्गिनत खेलों की तर्फ़ देख्ती भी नही है। आज कल हॉकी, फ़ुट्बॉल और टेनिस की लोकप्रियता बहुत ही तेज़ी से बढ रही है। शायद जब सरकार जब इन खेलों के लिये कुछ सुविधायें उपलब्ध करेंगी तब हम जाकर कुछ जीतेंगे।

फ़िर लेते है गरीबी की बात। अमरीका को आज़ादी मिले करीबन ढाई-सौ साल हो गये है।इनका देश भी बहुत बडा है और लोकसन्ख्या कम है। इसी कारण यह देश खुद के लिये बहुत अच्छा कर रहा हैं। भारत भी बहुत तेज़ी से बढ रहा है।सेन्सेक्स भी बहुत जल्दी 20000 तक पहुच जायेगा।रास्ता बहुत लंबा और कठिन है लेकिन मुझे लगता है कि अगर हम सब भारतीयों लोग एक साथ आकर प्रार्थना करे तो नामुंकिन को मुंकिन कर सकते हैं।

-शमिन असयकर

स्कूल के दिन


स्कूल से निकले मुझे अब लगबग 5 साल हो गये है।लेकीन यह पांच साल इतनी तेज़ गति से बीत गये कि मुझे कभी कभि लगता है कि मैं कल ही स्कूल में था। स्कूल के दिन मेरे अब तक की ज़िन्दगी के सब से सुहाने दिन रहे हैं।

पाठ्शाला में अध्यापिकों का आदर करना बहुत ज़रूरी था। अगर हम किसी भी अध्यापक को देखते तो हमें नमस्कार करना पड्ता था। अगर हम नही कह्ते तो हमें डन्ड होता था। फ़िर कभी कोई शिक्षक कक्षा में आये तो सभी पाठ्कों को खडे हो कर शिक्षकों का आमन्त्रण करना पडता था। यह सब चीज़ो ने मुझे बडों के प्रति आदर और छोटों के प्रति विनम्रता से पेश आने के अच्छे गुण दिये हैं।

हमारी पाठ्शाला खेल कूद को उतना ही महत्व देती थी जितना पढाई को। हर हफ़्ते एक फ़ुट्बॉल मैच होता था जिसमें हर बालक को भाग लेना आवश्यक था।मेरी स्कूल आर्य समाज द्वारा स्थापित थी। इसी कारण हर सोमवार हमारे स्कूल में एक हवन होता था। इस प्रकार हर बालक पुराने मन्त्रों को अच्छी तरह से समझ पाता था।

मैं जानता हू की हर व्यक्ति को अपनी स्कूल सबसे महान लगती है। और मेरे भी विचार कुछ ऐसे ही है। मैं आज जो भी हूँ वह मेरे पाठशाला और वहा सिखाने वाले शिक्षकों की वजह से हूँ ।

- शमिन असयकर

राज कपूर – भाग 1

राज कपूर का जन्म 1924 में हुआ था। पहली बार वह सन 1935 में उन्होंने फ़िल्म इक्बाल में अभिनय किया था। वे बांबे टाकीज़ स्टुडिओ में सहायक का काम करते थे। उनके पिता प्रुथ्वीराज कपूर को विश्वास ही नहीं था कि राज कपूर प्रसिद्ध होएन्गे। केदार शर्मा की वजह से ही वह ऊपर आयें थे और उन्होंने राज कपूर को अपनी फ़िल्म नीलकमल में नायक बनाया। सन 1948 में ही उन्होंने आर-के-फ़िल्म्स की स्थापना की और निर्देशक बन गये। इसी साल में उन्होंने फ़िल्म आग का निर्देशन किया और वह फ़िल्म काफ़ी सफ़ल रहीं।
राज कपूर ने सन् 1948 से 1988 तक अनेक सफल फिल्मों का निर्देशन किया जिनमें ज्यादातर फिल्में बॉक्स आफिस पर सुपर हिट रहीं। अपने द्वारा निर्देशित अधिकतर फिल्मों में राज कपूर ने स्वयं हीरो का रोल निभाया। राज कपूर और नर्गिस की जोड़ी सबसे अच्छी फिल्मी जोड़ियों से एक थी, उन्होंने फिल्म आह, बरसात, आवारा, श्री 420, चोरी चोरी आदि में एक साथ काम किया था।
राज कपूर ने फिल्म बॉबी का निर्माण व निर्देशन किया । बॉबी सन् 1973 में प्रदर्शित हुई जो बॉक्स आफिस पर सुपर हिट हुई। अपनी इस फिल्म में उन्होंने अपने बेटे ऋषि कपूर और नई कलाकार डिंपल कापड़िया को मुख्य रोल दिया और दोनों ही बाद में सुपर हिट स्टार बन गये।
-ॠषित दवे

राज कपूर – भाग 2

राज कपूर ने अपनी अगली फिल्म सत्यं शिवं सुन्दरं बनाई जो कि फिर एक बार हिट हुई। इस फ़िल्म पर उन्होंने बहुत पैसा खर्च किया था। इस फ़िल्म के बाद उन्होंने राम तेरी गन्गा मैली और हिना फ़िल्में बनायी जो की दर्शकों को बहुत पसन्द आयी थी। जब वह हिना फ़िल्म बना रहे थे तब उनका देहान्त हो गया और उनकी फ़िल्म बेटे रन्धीर कपूर ने पूरी की।
राज कपूर चार्ली चापलिन से बहुत प्रभावित हुए थे और उनके अभिनय में इसका प्रभाव ज़रूर दिखता था। उनकी फ़िल्मों की एक खास बात थी कि वे ना सिर्फ़ भारत में कामयाब होती थी बल्कि चीन,रूस और अनेक आफ़्रीकन देशों में भी काफ़ी मशहूर थी। राज कपूर को सन्गीत की भी बहुत अच्छी समझ थी और आज तक उनकी फ़िल्मों के गाने लोकप्रिय हैं। सन 1987 में राज कपूर को दादा साहेब फ़ालके अवार्ड दिया गया।
राज कपूर का नाम प्रसिद्ध रखने के लिये उनके पूरे परिवार ने कोशिश की। उनके छोटे भाई शम्मी कपूर और शशी कपूर बहुत सारी फ़िल्मों में आये और बडे अभिनायक बन गये। उनके बेटे रन्धीर कपूर और रिशी कपूर भी बहुत बडे कलाकार थे और बहुत सारी फ़िल्मों में अभिनय किया। उनकी पोतियॉ करिश्मा कपूर और करीना कपूर नये ज़माने के सबसे बडे अभिनेत्री बने। थोडे ही दिनों में उनका पोता रण्बीर कपूर भी हिन्दी फ़िल्मों की दुनिया में अपना करियर शुरू करने वाला है।
-ॠषित दवे

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2007

भारतीय त्योहार

भारत में अनेक त्योहार मनाये जाते है | इनमे से खास त्योहार दीवली और होली है | यह दोनो त्योहार खास इिसिलए है कयोिक इन त्योहारो मे बच्चो को सबसे अिधक मज़ा आता है| दीवाली मे पटाके जलाये जाते है जब की होली मे रंगो का उपयोग िकया जाता है | यह दोनो त्योहार भारत मे काफ़ी लोकप्रिय है खासकर बच्चो के िलये | होली का त्योहार मुख्यतः मार्च के महीने में मनाया जाता है और िदवाली का त्योहार मुख्यतः नवम्बर मे मनाया जाता है| भारत में हर धर्म के लोग रहते है | इस कारण भारत में अनेक त्योहार मनाये जाते है | दीवाली और होली के अलावा भारत में ईद और रमज़ान जैसे त्योहार भी मनाये जाते है | भारत में क्रिसमस भी मनाया जाता है|

इन सभी त्योहारो से लोगो के बीच के संबंध और मज़बूत होते जाते है | इसके अलावा इन सब त्योहारो से अलग धर्मो के बारे मे ज्ञान बडता जाता है और लोग एक दूसरे के करीब आते है|

आवश्यकता और अविष्कार

जबसे मनुष्य पृथ्वि पर है, वह आवश्यकता अनुसार नए-नए अविष्कार और खोज करता जा रहा है। भोजन की आवश्यकता के कारण, जानवरों को मारने के लिये हथियार, और भोजन पकाने के लिये अग्नि का अविष्कार हुआ। इस प्रकार आवश्यकता अनुसार मनुष्य अविष्कार और खोज करता चला गया।

मनुष्य भाषा, शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ा। जब समूह में रहने की आवश्यकता हुई तो समाज का जन्म हुआ। समाज में किस तरह रहा जाए, यह निर्धारित करने के लिये धर्म और न्याय का जन्म हुआ। समूह के बढ़ने से देश बने, और फिर कई देश बने। इस प्रकार विकास होता ही चला गया। आज जिस वैज्ञानिक युग में हम जीवन व्यतीत कर रहें हैं, वह इन अविष्कारों की ही देन है। मनुष्य बुद्धिमान प्रणि है। इस कारण, नये-नये विचार उसके मन में आते हैं और वह उन विचारों पर काम करने लग जाता है। इस ही प्रकार विकास होता है।

आज हर क्षेत्र में विकास हो रहा है। सभी क्षेत्रों में लोग, आवश्यकता अनुसार अविष्कार करने में लगे हुए हैं। प्राचीन काल में लोग कैसे रहते थे, आज हम, इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। इस प्रकार आवश्यकताओं ने ही अविष्कारों को जन्म दिया है।

जवाहरलाल नेहर

जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 मे हुआ था | उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नाम के शहर में हुआ था | जवाहरलाल नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने थे | वह भारतीय क्रांग्रेस के खास नेतायो मे से एक थे | उनके िपताजी का नाम मोतीलाम नेहरू था|

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम मे जवाहरलाल नेहरू का खास योगदान था| जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गांधी का साथ िदया था भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम मे | जवाहरलाल नेहरू को बच्चो से बहुत लगाव था | इस कारण से जवाहरलाल नेहर का जन्मदिन बाल िदवस के नाम से आज तक हर साल भारत मे 14 नवंबर को मनाया जाता है | इस िदन स्कूलो में बच्चो के िलये खास कार्यक्रम का आयोजन िकया जाता है |

जवाहरलाल नेहरू की बेटी का नाम इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी था| वह भी भारत की प्रधानमंत्री थी | उनके पोते का नाम था राजीव गांधी था| राजीव गांधी भी एक भारतीय प्रधानमंत्री बने थे | जवाहरलाल नेहरू 27 मई 1964 में चल बसे थे|

मेरा जनम दिन

मैने पिछले ब्लोग में लिखा था कि मैं फाल ब्रेक केलिए पेंन्सिल्वानिया घर जा रहीं हूँ। मेरा जनम दिन हर बार फाल ब्रेक पर परता है। तो मैं हर बार माँ और पापा के संग मनाती हूँ। इस बार मेरा जनम दिन सुन्दे पर पढा। यह मेरा एकिस बरस था। मैं दीक्से मना नही पाई क्योकि मेरा सब पेंन्सिल्वानिया वाले दोस्तों के मिड टर्म थे। लेकिन ऊस दिन माँ और पापा के संग बाहर खाना खाने जलेंगाये थे। बहुत स्वादिष्ट खाना था। लेकिन अब मैं वापस मिचिगन आगई हूँ। फ़ईएदे को मेरा अपार्टमेंट मे पार्टी है। मैं 60 लोगों को बुला रहे हूँ। पार्टी दुस बजे शूरू होए गी और रात के तीन या चार बजे ख़त्म होए गी। बहुत मजा आये गा। थर्स्दे को डान्स क्लब जाऊंगी। उसमे भी मेरे दोस्त आएंगे। लेकिन इस वीकएंड के बाद मैं सिर्फ पढ़ाई लिखाई करूंगी। दूसरी ब्रेक के लिए इन्तेजार करूंगी।

अनुशासन

आजकल के तेज़-रफ़तार ज़माने में, देखा जा रहा है कि युवाओं में अनुशासन हीनता बढ़ती जा रही है। आजकल के युवा, माता, पिता, गुरू तथा अपने से बड़ों का भी आदर करना आवश्यक नहीं समझते। वे यह भूल गये हैं कि अनुशासन ही सफ़लता की कुंजी है। अनुशासन केवल आपसी सम्बंधों में ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में होना चाहिये। यदि मनुष्य खान-पान पर अनुशासन रखे तो स्वास्थ्य अच्छा रहता है, यदि पढ़ाई में अनुशासन रखे तो बुद्धि प्राप्त होती है, और यदि मनुष्य अपने जीवन के हर क्षेत्र में अनुशासन रखे, तो वह सफ़लता प्राप्त करता है।

आजकल के स्कूल और विद्यालयों में, नैतिक शिक्षा कि कमि के कारण, युवा पीड़ि, अनुशासन के महत्त्व को नहीं समझ पाई है। अनुशासन की शिक्षा, घर से प्रारम्भ होती है। सबसे पहले बालक अपने माता, पिता, भाई और बहनों से अनुशासन सीखता है। उसके बाद, विद्यालय में गुरू से बालक को अनुशासन की शिक्षा प्राप्त होती है। कहा जाता है कि अनुशासन अच्छी शिक्षा और संस्कारों का ही दूसरा नाम है। जिस मनुष्य में शिक्षा और संस्कार न हों, वह तो पशु के समान होता है।

विश्व के सारे धर्म माता, पिता, गुरू तथा अन्य श्रेष्ठ जनों के साथ स्म्मानपूर्ण तथा अनुशासनपूर्ण व्यव्हार की शिक्षा देते हैं। परंतु आधुनिक युग में, लोग इस उपदेश को भुला चुके हैं। आज आवश्यकता है कि हम आने वाली पीढ़ी को अनुशासन के महत्त्व के बारे में बताएँ।

समाज सेवा

मानव एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना उसका रहना कठिन है। माता-पिता, भाई-बहन, आस-पड़ोस के लोगों को मिलाकर ही समाज की रचना होती है।समाज के बिना मानव का पूर्ण रूप से विकास होना असम्भव है।

समाज सेवा से अभिप्राय है कि जिस समाज में हम रहते हैं,खाते हैं ,पीते हैं व जीते हैं उन्ही लोगों की सेवा करना, उनकी मदद करना व उनका हित करना। तथा यह सब निस्स्वार्थ करना चाहिये । इससे पूरे राष्ट्र की व्यवस्था मे सुधार किया जा सकता है। समाज सेवा के द्वारा सरकार और जनता दोनों की आर्थिक सहायता की जा सकती है। पड़ोसियों की सेवा करना भी समाज सेवा ही है ।

हमारा देश कृषि प्रधान देश है। हमारे ग्रामों की उन्नति हमारे देश की उन्नति है। हर एक भारतीय का कर्तव्य है कि उनकी उन्नति में सहयोग दें।

विद्यार्थियों पर ही तो सारे देश का भविष्य निर्भर है, अतः समाज की सेवा करना हर विद्यार्थी का कर्तव्य है।

समाज सेवकों का कर्तव्य है कि सच्चे दिल से समाज की सेवा करें।सच्चे हृदय से की गयी समाज सेवा ही इस देश व इस पूरे संसार का कल्याण कर सकती है।

विद्या

किसी भी वस्तु का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करना ही विद्या है। यह कई प्रकार की होती है। लुहार, बढ़ई, सुनार, चित्रकार आदि का कार्य और मूर्तिकला अनेक प्रकार की विद्याएँ हैं। जो मानव किसी प्रकार की विद्या जानता है, वह उसका पण्डित कहा जाता है।

विद्या ही मानव का वास्तविक श्रृंगार है। विद्या ऐसा अमूल्य धन है जिसे न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न भाई बन्धु बांट सकते हैं,न पानी गला सकता है , न आग जला सकती है। धन खर्च करने से घट सकता है; किन्तु विद्या देने से बढ़ती है और इसे प्राप्त करने वाला सर्वत्र सम्मान पाता है।

विद्या से मानव अपनी अच्छाई और बुराई के विषय में भली-भांति सोच समझ सकता है। राष्ट्र की कमियों को दूर करने में सरकार का हाथ बंटा सकता है। मानव ने इसी के बल पर कई आविष्कार किये हैं जिससे जीवन को कई सुविधाऐं प्राप्त हैं। यह हमे यश, आदर और पैसा देती है। इसके बल पर हम हर इच्छा की पूर्ति कर सकते हैं ।

अतः हमें चाहिये कि विद्या के प्रचार के लिये तन , मन, धन से लग जाएँ और देश से अज्ञानता दूर करने का प्रयास करें ।

बुधवार, 10 अक्तूबर 2007

इस फाल ब्रेक

इस फाल ब्रेक में मैं पेंन्सिल्वानिया जा रहीं हूँ। मैं फ्राइडे जा रहीं हूँ। मैं अपनी रूममेट के साथ जा रहे हूँ क्योकि वह ओहियो में रहे थी है। उसका घर रस्ते पर पड़ता है। उसकी मुम्मी उसको रेस्ट एरीअया से ले लेंगीं। मैं घर मे जा के मुम्मी और पापा के साथ बातें करुँगी। मेरा खरगोश, रॉजर, भी आजायेगा। वह पगला है। मैं पेंन्सिल्वानिया में जा कर अपनी सहेलियों के साथ घूमने जाऊंगी। मैं पेंन्सिल्वानिया में चार दिन केलिये रह रहीं हूँ। मैं तुस्डे को मिचिगन लौट रहीं हूँ। हर क्लास केलिए प्रोजेक्ट्स करना पड़ेगा फाल ब्रेक पर। थोड़ा सा पढ़ाइ करना अच्चा होता है। क्योकि अगर वापस आने के बाद इक्दम से पढ़ाई करनी पड़े तो अच्चा नहीं लगता है। देखते है कि कितना काम घर जा के हो पाएगा.

विभिन्न मौसम

प्रक्रुती ने हमें एक कितनी सुन्दर चीज़ दी है। यह त्योहार हमारें वातावरण में लगातार बादल का है। हर मौसम कि अपनी एक खासियत होती है। अगर आप मुझसे पूच्छे कि मेरा सबसे प्रीय मौसम कौनसा है तो में कहूँगा कि मिशिगन में थन्डी का मौसम मुझे बहुत पसन्द है।

गरमी का मौसम मुझे अच्छा लगता है क्योंकि इस समय हम बाहर जाकर जो खेल जिस समय खेलना चाह्ते है वह खेल सकते हैं। और फ़िर इन महीनों में बहुत सारे फ़ल भी ताज़े और पिके हुए मिलते हैं।भारत में गरमी के समय में रोज़ 4-5 आम खा जात हूँ ।

फ़ॉल और स्प्रिन्ग का मुझे मुंबई में इतना सारा अनुभव नही हुआ क्योंकि मुंबई के मौसम में साल भर के समय में बहुत सारा बदल नही होता है। लेकिन मिशिगन में यह मौसम बहुत सुन्दर है। स्प्रिन्ग के समय में मिशिगन में मैं पढ रहा था। मैंने मिशिगन के गरमी का सामना नही किया है पर लोग कहते है कि वह बिलकुल खास नही है।

मिशिगन के मौसम कि एक खासियत यही है कि यहा की हवा में चिपचिपाहट नही है। इससे पसीना मानों आता ही नही है। मुंबई में पसीने से लोग मानों हैरान ही हो जाते हैं।

-शमिन असयकर

मुंबई की समस्यायें

भारत की राजधानी नयी दिल्ली है लेकिन असल में सबसे महत्त्वपूर्ण शहर मुंबई है। भारत के सबसे महान व्यापारी यहा रहते हैं और भारत के चालीस प्रतिशत पैसे यही से आते हैं। सिर्फ़ यही कारण हमारे इस शहर को सबसे महान बनाने में काफ़ि है।

यह शहर आज बहुत सारे समस्यायों का सामना कर रहा है। और यह समस्यायें भारत की प्रगति में बाधा डाल रही हैं। हर साल ट्राफ़िक की समस्या और भी बुरी होती जा रही हैं। प्रदूषण तो इतना सार है कि अपने छाती में छ्ह धूम्रपान करने के जितना धुआ जाता है। और फ़िर सब लोग वार्षिक पूरों के बारे में तो जानते ही हैं। यह तो मुंबई कि बहुत ही पुरानी और बेकार ड्रेनेज सिस्टम का परिणाम हैं। कयी आतन्क्वादी भी इस शहर को बरबाद करने का लक्ष्य बनाते हैं। बमस्फ़ोट तो मानो साधारण हो गये हैं।

लेकिन हात पे हात बैठे रहने से कुछ नही होने वाला है। और सरकार अब सही कदम उठाने की कोशिश कर रही है। मुंबई में 2010 तक 55 फ़्लाईओवर्स बन जाने वाले हैं जो ट्राफ़िक को अच्छी तरह से सम्भाल पायेन्गे। सी-एन-जी रिक्षा, टेक्सी और शायद बस भी आने से प्रदूषण भी शायद कम हो जायेगा। सिविल इन्जीनियर्स शहर से बारिश का पानी निकालने लिये नयी तक्नीक इस्तमाल कर रहे हैं। आतन्क्वादियों को पकड ने के लिये सरकार ने बहुत सारे ऍन्टी टेररिस्ट टीम्स को इकट्टा किया हैं।

-शमिन असयकर

भारत के महान महाराजा

भारत में कयी महान महाराजाओं और योधाओं ने जन्म लिया हैं। इन्में सबसे महान को चुनना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुंकिन है। इन महान लोगों में से बस तीन चार के बारे में बात करना बहुत गलत है लेकिन में सबके बारे में तो अभी नही लिख सकता हूँ । महाराजा अशोक, छत्रपती शिवाजी महाराज और अक्बर महाराज क मैं सबसे ज्यादा सम्मान करता हूँ ।
सम्राट अशोका का नाम तो कौन नहीं जानता। उनके ज़माने में तो सारे विश्व में उनका नाम प्रसिद्ध था। वह एक महान योधा थे और उन्होंने अनगिनत युद्ध जीते थे। कलिन्गा के जीत के बाद उनके मन में परिवर्तन हुआ। वह युद्ध और लढाई के बारे में भूल जाना चाहते थे और इसीलिये वह गौतम बुद्धा के बडे भक्त बन गये।
शिवाजी महाराज महाराष्ट्र के सबसे बहादूर महाराज माने जाते है। महाराष्ट्र का हर छोटा बच्चा उनकी कहानियाँ सुनकर बडा हुआ हैं। उनका जन्म जन्म उन्नीस फ़ेब्रुअरी 1927 में शिवनेरी किल्ले में हुआ था। मोगल राज्य के अन्याय के खिलाफ़ खडे रहकर महाराष्ट्र कि सुरक्षा करने के लिये उनका नाम सारे भारत में प्रसिद्ध है।
शहंशाह अकबर मुगल राज के सबसे महान राजा माने जाते है। इनके ज़माने में भारत में सबसे ज्यादा प्रगति हुई थी। इन्होंने भारत के कयी राज्यों पर कब्ज़ा कर अखन्ड भारत की स्थापना की। वह न्याय और शान्ति में विश्वास करते थे और इसी कारण उन्होंए जाज़िआ को भी बन्द कर दिया था।
-ॠषित दवे

पानी का महत्व

पानी एक बहुत ही अनोखी चिज़ है।हमारे ज़िन्दगी में हम पानी का इतना इस्तमाल करते है कि हम अक्सर उसका महत्व भूल जाते हैं। कही नल बन्द नही करते है तो कही और पानी को फ़ेंक देते हैं। परन्तु यह साधारण दिखने वाली चीज़ असल मे सबसे महत्वपूर्ण है। पानी के महत्व को हमारे पूर्वज भी समझते थे।इसीलिये पानी को हमारे सन्स्क्रुती में बहुत ही पवित्र माना जाता है।
आज कल पानी के सही उपयोग के बारे में काफ़ी बात चीत चल रही है। बढती जनसन्ख्या की बढती हुई जरूरतें और और भी अच्छी फ़सल पाने के लिये पानी का उपयोग किय जाता है। इस समस्या का हल करने के लिये सरकार बहुत ही तेज़ी से देश भर में सेंकडों बन्ध बनवा रही है। हमारे देश में हजारों नदियों हैं लेकिन हम इन सब के पानी का सही उपाय नही कर सकते है। अच्छे सोच विचार के साथ शायद हम उसका पूर्ण उपयोग कर सकते हैं।
मैं बस इतना ही कहना चाहूँगा कि पानी को वैस्ट मत कीजिये। हर रोज़ भारत में अनेक लोग प्यास से मर जाते हैं। इस बात की तरफ़ ध्यान देकर थोडा पानी का सदुप्योग करने का सोचिये।
-ॠषित दवे

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2007

भारत का गौरवशाली अतीत

प्राचीन काल में भारत एक महान देश था। प्रायः लोग इसे सोने की चिड़िया के नाम से संबोधित करते थे। सभी प्रकार से यह देश सम्पन्न था। सभी लोग धर्म में विश्वास करते थे। समाज में बुराइयाँ नहीं थी। यहाँ तक लोग अपने घरों में ताला मारना भी आवश्यक नहीं समझते थे।

प्राचीन काल में भारत के शिक्षा का स्थर भी बहुत ऊँचा था। दूर-दूर से लोग शिक्षा ग्रहण करने भारत आते थे। नालन्दा और तक्षिला जैसे विश्वविख्यात पुस्तकालय भी भारत की शोभा बढ़ाते थे। स्त्री और पुरुष, समान रूप से शिक्षा ग्रहण करते थे। भारत में विज्ञान और कलाएँ भी बहुत विकसित थे। भारत विज्ञान, कला, संस्कृति और सभ्यता, सभी क्षेत्रों में सम्पन्न था। भारत के गौरव के चर्चे सारे विश्व में थे।

वेद, पुराण, गीता और रामायण जैसी महान पुस्तकें भारत देश की धरोहर हैं। भारतवर्ष के गौरव से आकर्षित कोलम्बस भी भारत की खोज में निकला था। अंग्रेज़ भी भारत की सम्पन्नता को देखकर, व्यापार करने आए और उन्होंने धीरे-धीरे भारत में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया।

स्वतंत्रता प्राप्त करने के पश्चात, भारतवर्ष पुनः अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त करने में प्रयत्नशील है। विज्ञान और तकनीकी विषय में कुछ हद तक सफ़लता भी प्राप्त कर ली है। वह दिन दूर नहीं जब भारत अपना प्राचीन गौरव पुनः प्राप्त कर लेगा।

योग, व्यायाम और प्राणायाम

हमारे ॠषियों ने अपने जीवन-भर तपस्या के फल स्वरूप, संसार में वास्तविक सुख और शांति लाने के लिये योग विज्ञान का निर्माण किया था। सुख और शांति मात्र धन और भौतिक पदार्थों को एकत्रित करने में नहीं है। सच्चा आनंद तो मनुष्य के शरीर और मन के स्वस्थ रहने पर निर्भर करता है। यदि हम महंगी डाक्टर की फ़ीस तथा दवा इलाज पर किये जाने वाले भारी खर्चे से बचकर स्वस्थ जीवन जीना चाहते हैं तो हमें योग की शरण लेनी ही पड़ेगी।

कहा जाता है कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का नाम योग है। प्राणायाम साँस को लेने और छोड़ने की प्रक्रिया है। प्रायः हम शरीर के रोगों का इलाज औषधियों द्वारा करते हैं। परंतु यह देखा गया है कि रोग , मात्र इन औषधियों से नष्ट नहीं होते। योग और प्राणायाम के अभ्यास से हम इन शारिरिक रोगों से मुक्त हो सकते हैं।प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से विचार केन्द्रित होते हैं और इस से प्राप्त शक्ति, मनुष्य के जीवन के लिये लाभदायक सिद्ध होती है।

आज हम सभी योग और प्राणायाम के महत्व को समझ चुके हैं। इस करण आज सभी देशों में योग का अभ्यास और योग सस्थानों की स्थापना हो रही है। योग और व्यायाम से रोग नष्ट होते हैं और शरीर सुन्दर तथा बलित हो जाता है। योग द्वारा विचारों की भी शुद्धि होती है। योग, प्राणायाम और व्यायाम हमें नियमित करना चाहिये। यह तभी संभव है यदि हम उचित भोजन ग्रहण करें।

जब शरीर स्वस्थ हो जाता है, तब मन भी स्वस्थ हो जाता है। स्वस्थ मन और शरीर होने से व्यक्ति सांसारिक क्षेत्र में सफ़लता प्राप्त करता है। अत: इस विद्या का अभ्यास हमें लक्ष्य प्राप्ति में सहायता करता है।

एक सुनेहरा सफ़र ' भाग ७ '

मिसुला मैं आज चोथी दिन कि सुबेह हुई | आज हमारे लंबे सफ़र का आंत होने वाला था | नाश्ता कर के और दो कप काफी पीकर हम दोपहर होने से पहले निकल पडे | आज और दिनों के मुक़ाबले हमे कम ही चलना था | मलुमं पड़ा कि मिसुला से सियाटल का सफ़र केवल सात घंटों मैं पुरा किया जा सकता है |
मिसुला मोंटाना के पश्चिमी तट पर मौजूद है | यहाँ से निकल कर मोंटाना मैं केवल ७० मील बचे थे | अभी तो हम छोटे पहाड़ों मैं ही थे | बॉर्डर पार कर हम आइडहो मैं घुसे | इससे पार करने मैं केवल १५० मील ही थे पर यह हमारे सफ़र का सबसे कठिन भाग था | आइडहो मैं घुसते ही हम तेज़ी से रोक्की पहाड़ों के ऊपर चढ़ने लगे | सड़क आब ऊंच - नीच बराबर से करती और पहाड़ों के चोटियों पर साँपों के तरह लिपटी दिखाई पड़ती | आते जाते शेहेर और भी छोटे मलुमं पड़ते जिधर आबादी और भी कम होती | यहाँ हम केवल गैस भरने रुके | इन् पहाड़ों के बीचों बीच एक समय पर हमारी ऊंचाई ६००० फ़ीट तक पहुंच गये थी | याहा हवा पतली थी , पहले -पहले सांस लेने मैं इसका फर्क को पहचाना हमने और बाद मैं तो हम फिर पहाड़ों से उतरने लगे |
पहाड़ों से निकल कर हम आखरी जिला वाशिंग्टन मैं घुसे | याहा घुसते ही पुर्वी बॉर्डर मैं वाशिंग्टन के सियाटल के बाद का शेहेर स्पोकान मैं घुसे | यह काफी बड़ी शेहेर मलुमं हुई आख़िर सियाटल के बाद उसी का नाम था | स्पोकाने के आगे करीब १५० मील तक केवल खुली जमीं और खेती दिखाई दी | ऐसा लग ही नही रह था कि कुछ ही देर पहले हम रोक्कियों के ऊपर मौजूद थे | पिछे, पुर्व के ओर देखने पर भी नही दिखते |

एक सुनेहरा सफ़र ' भाग ६ '

मोंटाना, को भालुओं का जिला कहा जाता है | इस जिला मैं रोकी पर्वत, जंगल, झीलें और कई तरह के प्राकृतिक सुन्दरता मौजूद हैं | वैओमिंग से निकल कर मोंटाना मैं पूर्वी दिशा से हम घुसे | आई-९० से ही हमने अगले ५०० मील मैं मोंटाना को देखा और उसकी सुन्देर्ता को अनुभव किया | रासते मैं बिल्लिंग्स मैं दिन का खाना और कुछ देर आराम करने रुके | घने बादल छाने लगे और ऐसा लगा कि कुछ देर मैं वर्षा होने वाली है | घने बादल पूर्व से पशचिम की ओर बढ़ रहे थे | हम बिल्लिंग्स से फोरेन निकले और पश्चिम के ओर तेजी से बढने लगे | हम बादलों को तो नही हरा सकते पर किस्मत अच्छी थी कि वेह उत्तर-पश्चिम की ओर जाते मलुमं होने लगे | बाद मैं मालुमं हुआ कि उन बादलों ने घनघोर बारिश करवा दी थी | पहाड़ी इलाके मैं इतने बारिश मैं चलना सुरक्षित नहीं होता |
शाम होने पर हमने बोस्मन को पर किया | पुरी तरेह से अँधेरा नही हुआ था तो हम चलते रहे | इस वक़्त हमे मिसुला पहुँचने के लिए १०० मील और चलना बाकी था | याहा हम यात्रा की तीसरी रात गुजरने रुके। मिसुला मलुमं पड़ा कि एक चोटी सी शेहेर जो पहाड़ों के ऊपर स्थित थी | याहा की आबादी भी और शेहेरों के मुक़ाबले मैं कम थी | याहा युनिवर्सिटी होने के वज़ह से छात्रों की आबादी बहुत आधिक मिलती | अन्य कालेज वाले शहरों के तरह यहाँ हर मोड़ पर कोफ़ी शाप मिलते जिनमे छात्रों को कोफ़ी पीते और अपने लेप-टाप खोले और व्यस्त दिखते | इससे देख कर मुझे कुछ हद ताख एंन अर्ब्र कि याद आ गई |

आज की नारी

आज की नारी

नारी वैसे तो सदैव से ही हर काम मे पुरुष का हाथ बटाती आई है।महारानी केकयी राजा दशरथ के साथ युद्ध मे गयी थीं। अज्ञातवास में पाण्ड्वों के साथ द्रौपदी को भी विराट के यहाँ नौकरी करनी पड़ी थी। कृषकों की स्त्रियाँ सदैव से ही कृषि कार्यों मे पूर्ण रूप से सहयोग देती आयी हैं। श्रमकों के साथ उनकी महिलायें भीकाम करती आयी हैं।

फिर भी नगरों मे एक ऐसा वर्ग पनपता गया जिसकी स्त्रियाँ केवल घरेलू काम ही करती चली आयी हैं। घर के बाहर किसी भी क्षेत्र मे काम धन्धे के लिये उनका जाना बुरा माना जाता था।मुस्लिम काल मे भारत मे पर्दा प्रथा का बहुत ज़ोर रहा था। इससे नारी का कार्य क्षेत्र घर तक ही सीमित रह गया। अंग्रेज़ी शिक्षा व समाजसुधारकों के परिश्रम से पर्दा प्रथा का अन्त हुआ। अतः आज की नारी के लिये यह स्वभाविक हो गया कि वह घर से बाहर निकलकर दूसरे क्षेत्रों मे भी काम करे।

आज शासन व उद्योगों में महिलायें पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। हमारे राष्ट्र की प्रधानमत्री एक महिला थीं,हमारे राष्ट्र की राष्ट्रपति एक महिला हैं , डाक्टर,पाइलेट,आदि सभी क्षेत्रों में नारी सर्वश्रेष्ठ है। आर्थिक चुनौती हो या फिर पारिवारिक समस्या आज की नारी सभी परिस्थितियों का सामना करने से न तो घबराती है और न ही झिझकती है।प्राचीन काल से आज तक नारी ने हर रूप मे , हर परिस्थिती में अपने आप को ढाला है। परन्तु आज की नारी परिस्थितियों को अपने स्वरूप ढालना सीख गयी है।

परिश्रम का महत्त्व

हर मानव की कुछ इच्छाएँ व आवश्यकतायें होती हैं। वह सुख शान्ति की कामना करता है, दुनियाँ में नाम की इच्छा रखता है।किन्तु कलपना से ही सब कार्य सिद्ध नहीं हो जाते। इसके लिये परिश्रम करना पड़ता है। जैसे सोये हुए शेर के मुख में पशु स्वयं ही प्रवेश नही करता उसे भी परिश्रम करना पड़ता है, वैसे ही केवल मन की इच्छा से काम सिद्ध नही होते उनके लिये परिश्रम करना पड़ता है। परिशम ही जीवन की सफलता का रहस्य है।

परिश्रम के बल पर मानव अपने लक्ष्य तक पहुँच सकता है। एक आलसी व अकर्मण्य मानव कभी अपना लक्ष्य नहीं प्राप्त कर सकता।भाग्य के सहारे बैठने से कार्य सम्पन्न नहीं होते। विद्यार्थी वर्ग को भी परीक्षा में सफलता पाने के लिये अटूट श्रम करना पड़ता है।मानव परिश्रम से अपने भाग्य को बना सकता है ,कहा जाता है कि ईश्वर भी उन्ही की मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं।

मानव का शारीरिक व मानसिक विकास भी परिश्रम पर निरभर करता है। आधुनिक मनुष्य वैज्ञानिक यंत्रों का पुजारी बनता जा रहा है।परिश्रम की ओर से लापरवाही इसमें घर करती जा रही हैं। नैतिक पतन हो रहा है जिससे अशांति फैलती जा रही है। फलस्वरूप समाज और रष्ट्र की प्रगति के लिये भी परिश्रम आवश्यक है।

सच्चे सुख व विकास के लिये परिश्रम के महत्त्व को समझना अत्यन्त आवश्यक है।

सोमवार, 8 अक्तूबर 2007

जीने की इच्छा

"जिन्दगी एक सफ़र हैं सुहाना, यहाँ कल क्या हो किसने जाना" - इसी गाने को लेकर मेरे मन में बहुत सारे सवाल उठे। क्या मेरे तरह सभी अपने जीवन को लेकर यह गाना सच्चे दिल से गा सकते हैं? इस सवाल का जवाब नहीं हैं यह तो मैं जानता हूँ, लेकिन इस गम्भीर सवाल का इतना आसान जवाब का कारण में नहीं जानता। भाग्वान् ने हर मनुष्य को एक समान बनाया हैं और जीने का तौफा दिया हैं। हम सब ने इस दुनिया मै जनम एक ही रास्ते से लीया है। फिर हम सब के जिन्दगी में इतना अंतर क्यों हैं? ऐसा क्यों हैं कि हज़ारो में से मुठी भर लोग के जीवन में खुशिया हैं, सफलता प्राप्त करने की इच्छा हैं? जिन्दगी के इस भाग दौड़ में हम अपने आप से ऐसे सवालो के लिये जवाब खोजना ही भूल गाये हैं। यह दुनिया मनुष्य को सद्दियो से बस्स देता आ रहा हैं - हमारा इस धरती पर एक बहुत बड़ा एहसान हैं। इस विशाल और लुभावना दुनिया में हर कदम पर जीने कि इशारे मिल सकते हैं - हमारा कर्तव्य बनता हैं कि हम एक दुसरे को इन कदमो का महसूस दिलाये और जीने की इच्छे को वापस जगाये।

बुधवार, 3 अक्तूबर 2007

हॉस्टेल की ज़िन्दगी

हॉस्टेल की ज़िन्दगी

मैं मुम्बई में अपने माता, पिता और छोटे भाई के साथ रह्ता था उन्नीस की उम्र तक्।इतनी साल माता पिता के साथ रहने के बाद अब मिशिगन में आकर अकेले रहने का अनुभव अनोखा और अजीब है।

पहले थोडे दिन अकेले रहने के बाद मुझे ऐसा लगा कि यह ज़िन्दगी कितनी अछी है। अकेले रहकर मुझे लगा कि मेरा खुद पर विश्वास बढने लगा और उसके साथ मेरा आत्मसम्मान भी।ऐसा लगा कि अब मैं खुद के सारे काम कर सकता हू। यह ज़िन्दगी मुझे आज एक साल के बाद भी उतनी ही पसन्द है लेकीन कई बार मुझे घर कि बहुत याद आती है।

हॉस्टेल में रहने कि बात इसलीये अलग है क्योंकि हम अलग अलग देशों के लोगो के साथ रह सकते है। नयी चीज़े सीख सकते है और नये दोस्त बना सकते है। हा लेकिन खाना तो बिलकुल खास नहीं है लेकिन इस साल मेरा रूम मेट ॠषित बहुत अच्छा खाना बनाता है। और वैसे भी खुद पकाकर खाना खाने में कुच्छ खास ही बात है।

में यह नहीं कहूँगा कि असली घर में रहने में मज़ा नही आता है। कॉलेज़ से निकलने के बाद में अपने माता पिता के साथ ही रहना चाहता हू लेकिन हॉस्टेल में रहने की बात भी अलग ही है।मैं सिर्फ़ इतना ही कहना चाहता हू कि हर व्यक्ति को हॉस्टेल के जीवन को अनुभव करना चाहिए।

-शमिन असयकर

मिशिगन में हिन्दी का अभ्यास

मिशिगन में हिन्दी का अभ्यास

मैंने भारत में हिन्दी दसवीं कक्षा तक पढी थी। उसके बाद ग्यारावी और बारावी कक्षा में मुझे हिन्दी का विषय नहीं था। इसी कारण मेरा हिन्दी भाषा से संबन्ध टूटने लगा। सभी पढाई और काम की बातें अन्ग्रेज़ी में होती थी और फ़िज़ूल की बातें हिन्दी में। तो शुद्ध एवम सुन्दर हिन्दी बोलने का अवसर कम होता गया।

मुझे एक साल पहले ऐसा बिलकुल नहीं लगा था कि में फ़िर हिन्दी पढूंगा। पर जब मैंने मिशिगन के कोर्स गाईड को पढा मैंने सोचा की मुझे अपने हिन्दी को सुधारने का और एक मौका मिल रहा है। इस्सी कारण मैंने हिन्दी विषय को चुना।

इस क्लास में हिन्दी एक अलग अन्दाज से पढाया जाता है। भारत में शिक्षक इतने खुले विचार के नहीं थे। हमेशा यह रटों , वह रटों , इतनें पन्नों का निबंध लिखों वगेरा वगेरा। पर यहा हिन्दी के समझ को ज्यादा महत्व दिया जाता है। हिन्दी पढाने वाले जानते है कि कोई प्रेमचन्द हिन्दी जितना नहीं जानना चाहता है। हम सिर्फ़ हिन्दी सहीं तरह से बोलना और सहीं तरह से लिखना चाह्ते है ताकि हम हमारे सन्स्क्रुती के साथ सबन्ध जोडे रखे। इस्सी विचारों को में बहुत पसन्द करता हू।

-शमिन असयकर

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र भारत का तीसरा सबसे बडा प्रान्त है और आबादी के हिसाब से दुसरा सबसे बडा। गुजरात, छत्तिसगड, आन्ध्र प्रदेश, गोवा, कर्नाटका और मध्य प्रदेश महाराष्ट्र के किनारों पर हैं। महाराष्ट्र के पश्चिमी किनारे पर अरबी समुद्र स्थित है। महाराष्ट्र का पुन्जी शहर मुंबई है जो पूरे भारत में सबसे अधिक आबादी के लिये जाना जाता है।
सातवी सदी में चीनी यात्रि ह्यू त्सान्ग के पुस्तकों में महाराष्ट्र का नाम प्रसिद्ध हुआ। शिवाजी राजे भोसले कि वजह से महाराष्ट्र्ण लोग मोगल लोगों के विरुद्ध आये। शिवाजी ने एक बहुत ही अच्छि सेना तयार की थी। महाराष्ट्र कि मुख्य भाषा मराठी है। रायगड, प्रतापगड और सिन्धुदुर्ग जैसे मराठी राज के कई सारे फ़ोर्ट पूरे महाराष्ट्र में पाये जाते है।
विश्वप्रसिद्ध इन्डियन फ़िल्म इन्डस्ट्री महाराष्ट्र में पायी जाती है। मराठी फ़िल्में, नाट्क और गाने भी बहुत प्रसिद्ध हैं। महाराष्ट्र में खाना भी बहुत अच्छा मिलता है- पूरण पोळी, बाकरवडी, वडा पाव, पाव भाजी, पिट्ल भाकर और वरण चावल थोडी जानीमानी खाने कि वस्तु गिनी जाती है।महाराष्ट्र की औरतें ज्यादातर साडीया पहनती है और यहा के मर्द शर्ट और पैन्ट पहनते हैं। दिवाली, गुडी-पाड्वा, गणेशोत्सव, रन्ग्पन्चमी और गोकुलष्टमी कोय जानेमाने त्योहारों में गिने जाते हैं। परन्तु महाराष्ट्र में गणेशोत्सव सबसे बडा त्यौहार है।
-ॠषित दवे

महाराष्ट्र पर्यटन

महाराष्ट्र पर्यटन
भारत देश में महाराष्ट्र सबसे इन्डस्ट्रलाईस्ड प्रान्त है। मुंबई, पुणे, औरन्गाबाद, नागपुर और नाशिक महाराष्ट्र के बडे शहरों में आते हैं। यहा के लोगों की मात्रभाषा मराठी है और यहा के लोगों को महाराष्ट्र्ण बुलाया जाता है। पहाडी शहरों में महाबळेश्वर और माथेरान काफ़ी प्रसिद्ध है। छुट्टियों के वक्त तो इन शहरों में बहुत ही भीड होती है पर मौसम भी बहुत सुहाना होता है।
धार्मिक शहरों में नाशिक के काफ़ी नज़दीक शिर्डी शहर है। इस शहर का साई बाबा का मन्दिर बहुत ही प्रसिद्ध है। इसी तरह मुंबई का महालक्ष्मी मन्दिर और पुणे के दगडूशेठ गणपति मन्दिर बहुत हि अधिक विख्यात है।
मुंबई तो पूर्वी न्यू यॉर्क के नाम से विख्यात है। मुंबई में चोव्पाटी, गेटवे ऑफ़ इन्डीया , प्रिन्स वेल्स म्युज़ियम, एलेफ़न्टा केव्स और मढ आईलन्ड बहुत ही प्रसिद्ध है।
पुणे तो महाराष्ट्र का सान्स्क्रुतिक प्रधान माना जाता है। शनिवारवाडा, लाल महल, सिन्हगड जैसे ऐतिहासिक जगह काफ़ी प्रतिस्थित है। पुणे का आई:टी पार्क और लक्ष्मी रोड काफ़ी जाना माना है।
औरन्गाबाद शहर महाराष्ट्र के मध्य भाग में स्थित है। यहा के अजन्ता-एल्लोरा केव्स विश्व्प्रसिद्ध हैं। इन गुहाओं में लॉर्ड बुद्धा के तक्षण बनाये गये हैं।
नागपुर एक बहुत ही सुन्दर शहर है और यहा के सन्त्रे पूरी दुनिया में जाने माने हैं।
नाशिक एक काफ़ी सुन्दर शहर है और यहा का मौसम सुहाना है। नाशिक के कालाराम और दुसरे मन्दिर विख्यात है और लोग इधर गोदावरी नदी में डुबकी मारना पवित्र समझते हैं।
-ॠषित दवे

इस महीना

इस हफ्ता मेरे लिए बहुत बुरा है। हर दिन मेरा एक टेस्ट है। रोज दिन पढ़ना पर रहा है। एक दिन मे सिर्फ चार घंटे सो पा रही हूँ। मंडे मेरा बिओसेमिस्त्री का टेस्ट था। टुस्डो को एन्दोक्रिनोलोगी का टेस्ट था। आज हिंदी का टेस्ट है। कल फिर एन्दोक्रिनोलोगी का टेस्ट है। मैं थर्सडो को बहुत आराम से सो जाउंगी। मुझे रिसर्च लैब मे भी जाना है। आज से दो हफ्ते मे पेंन्सिल्वानिया पांच दिन के लिए जाउंगी। बहुत मजा आयेगा। माँ और पापा से बात करुँगी। मैं अपने खरगोश से खेलूंगी। वह बहुत प्यारा है। मेरे ऊपर चढ़ जाता है। उसका नाम रॉजर है। वह उसको अपना भाई समज्ती हूँ। मेरे घर में मच्लीयां भी है। वह भी बहुत प्यारीं है। मेरे टौंक में दस मच्लीयां है। फिर मौ वापस मिचिगन आजऊंगी । बस इस महीने में इतना ही है।

दीपावली

भारत के सभी त्योहारों में दीपावली की महत्ता और लोकप्रीयता किसी भी पर्व को प्राप्त नहीं । कार्तिक की अमावस्या को मनाया जाने वाला ये पर्व असंख्य मोमबत्तियों,रंगीन-बल्बों, दीपमालाओं से अमावस्या के अंधेरे को दूर देता है।

इसपर्व के साथ अनेक पौराणिक कथायें जुड़ी हैं। रामचन्द्र जी का वनवास से आगमन , युधिष्टिर का राजसूयी यज्ञ आदि कुछ ऐसी कहानियां हैं। आज इसके साथ कुछ आधुनिक कारण भी जुड़कर इसके महत्व को बढ़ा रहे हैं ।

इस पर्व का आर्थिक महत्व भी है। हमारा देश कृषि प्रधान देश है और शीत काल के प्रारम्भ की सूचना दे कर दीपावली किसानों के व्यवसाय को प्रभावित करता है। घरों और दुकानों की लिपाई पुताई होती है। बाज़ार चमकने लगते हैं, घरों से पकवानों की महक उठती है, मिठाइयों व खिलौनों की दुकानों पर भीड़ जमा हो जाती है। इस तरह दिवाली स्वच्छ्ता और स्वास्थ्य का भी उत्सव बन गया है।

यह हमारा राष्ट्रीय पर्व के साथ साथ उल्लास, आर्थिक और प्रगति-सूचक पर्व भी है। देश और जाति की समृद्धि का प्रतीक यह पर्व अति मनोहर व महत्वपूर्ण है।

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2007

राष्ट्रपिता महात्मा गान्घी

सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी का नाम बच्चे बच्चे की ज़बान पर है। इनकी वाणी में जादू था जिससे हमारा विश्व प्रभावित हुआ। हम लोग भारत में आज जो स्वतंत्रता की सांस ले रहे हैं, इन्ही के प्रताप से है।

अंग्रेज़ी शासन काल मे गदर के बाद भारतीयों पर दमन चक्र चला,सभ्यता और संस्कृति का संघार होता गया। ऐसी परिस्तिथियों के बीच राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचन्द गाँधी का जन्म दो-अक्तूबर,1869 को गुजरात काठियावाड़ प्रांत के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ।उनकी माता ,पुतलीबाई, सरल प्रवृत्ति की ,एक धार्मिक महिला थीं।उनके पिता कर्मचन्द,रियासत के दीवान थे।

इनकी प्रारम्बिक शिक्षा राजकोत मे हुई। अभी मैट्रिक मे ही थे जब तेरह वर्ष की आयु में इनका विवाह कस्तूरबा से हो गया। मैट्रिक के बाद सन 1887 मे ये बैरिस्ट्री करने इंग्लैंड गये। सन 1891 मे ये बैरिस्ट्री करके लौते। संकोची व सत्यवादि होने के कारण इन्हें सफलता प्राप्त न हो सकी।सन 1893 मे ये एक मुस्लिम व्यापारी की पैरवी करने के लिये दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। वहां पर अंग्रेज़ों की जाति भेद, अपमान और यातनाएं सहन न कर सके। आंदोलन और सत्याग्रह मे टूट पड़े। सन 1914 में सफलता मिली और वे स्वदेश लौटे।

गाँधीजी जब स्वदेश लौटे तो प्रथम महायुद्ध छिड़ चुका था। इसमें भारतीयों ने धन और तन से अंग्रेज़ों की सहायता की पर अंग्रेज़ों ने स्वराज के वचन देकर तोड़ दिया। सन 1920 के असहयोग 1930 के नमक कानून तोड़ो आंदोलनों से अंग्रेज़ कांप उठे। इस बीच गाँधीजी और उनके सहयोगियों को कई बार बंदीगृह मे रहना पड़ा ।

भारत मे छुआछूत को देखकर इनका मन व्याकुल हो उठा। इसको मिटाने के लिये इन्होंने कई आंदोलन किये। फलतः मंदिरों के द्वार इनके लिये खुल गये।

सितम्बर 1937 मे द्वितीय महायुद्ध मे भारतीयों की सम्मति के बिना सेना को ब्रिटेन की रक्षा के लिये भेजा गया। इससे राष्ट्रीय नेता बिगड़ गये असेम्बली त्याग दी । पुनः आंदोलन हुए ,क्रांति हुई ,भारतीयों ने कई बलिदान दिये। इससे अंग्रेज़ों के पांव दगमगा गये। गाँधीजी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों के आगे अंग्रेज़ों को झुकना पड़ा। 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली और इनका सपना पूरा हुआ।

30 जन्वरी 1948 की संध्या को बिरला भवन की प्रार्थना सभा में नाथूराम गोड्से ने इन्हें गोली का शिकार बनाया।

वे आज हमारे बीच नहीं हैं पर हमें सत्य , अहिंसा ,एकता और सादगी के सिद्धांतों पर चलने की शिक्षा व साहस विरासत मे दे गये हैं।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर

रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म सन 1861 में कलकत्ता में हुआ था | रवीन्द्रनाथ ठाकुर को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है | बचपन में हि रवीन्द्रनाथ ठाकुर को कविता लिखने का शौक था |

रवीन्द्रनाथ ठाकुर भारत के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता हैं | इसके अलावा वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति है | भारतीय राष्ट्रगान भी रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने ही लिखा था | इसके अलावा बांग्लादेश के राष्ट्रीय गान आमार सोनार बांग्ला की रचना भी रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने ही किया था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहानीया भी लिखी थी | रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने साहित्य के हर शाखा पर काम किया था | चाहे वो कविता हो या गान। इसके अलावा रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कथा, नाटक और शिल्पकला पर भि काम किया था। उनकि मुख्य रचना गीतांजली के नाम से जानि जाति है | गीतांजली रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओ का संग्रह है |

रवीन्द्रनाथ ठाकुर 7 अगस्त 1941 को चल बसे | आज भी इस दिन पर इनकी याद में मौन रखा जाता है |

प्रदूषण

आज के विकसित, आधुनिक युग में प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। मनुष्य, पशु-पक्षी, वनस्पतियाँ, सभी इस से प्रभावित हो रहे हैं। यहाँ तक कि ॠतुओं पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। विश्व के लिये प्रदूषण एक गंभीर समस्या का विषय बना हुआ है। विभिन्न देशों के वैज्ञानिक इस समस्या के समाधान ढ़ूँडने के लिये अपने-अपने तरीके से प्रयास कर रहे हैं।

प्रदूषण चाहें वायु का हो या जल का, दोनों ही घातक हैं। विज्ञान के विकास के साथ बिजली की बढ़ोतरी हुई। बिजली के लिये पावरहाउसों की संख्या बढ़ी। व्यापार के लिये कल-कारखाने बढ़े, जिनकी चिमनियों से निकलने वाले धूँए ने वातावरण को प्रदूषित किया। घर में चलने वाले विद्युत यत्रों तथा वातनुकूलित यंत्रों से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसों के कारण भी वातावरण प्राभावित हो रहा है। बड़े-बड़े व्यापारिक शहरों में प्रदूषण का स्तर और भी बढ़ता जा रहा है। इन शहरों में गाड़ियों, बसों और ट्रकों की संख्या अधिक है। पेट्रोल और डीज़ल से उतपन्न धूँए से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिये, भारत में सी.एन.जी. का प्रयोग भी किया जा रहा है।

हमारे वन प्रकृति की धरोहर हैं। पेड़-पौधे वायु को शुद्ध करने में हमारी सहायता करते हैं। वन के पेड़ कटते जा रहे हैं और मनुष्य प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। इन सब का असर मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है और नए-नए रोग उतपन्न हो रहे हैं। प्रदूषण को रोकने का प्रयास वैज्ञानिक तो कर ही रहे हैं परंतु हर मनुष्य का कर्तव्य है कि वह प्रदूषण को रोकने का पूरा प्रयत्न करे।

धन के प्रयोग

धन के प्रयोग तीन प्रकार के होते हैं: दान देना, धन का प्रयोग करना, तथा धन को केवल एकत्रित करना। ये धन की तीन गतियाँ होती हैं। जो व्यक्ति न धन का दान करता है, न स्वयं उपयोग करता है, उसका धन व्यर्थ हो जाता है अर्थात् ऐसा धन न होने के बराबर होता है।

धन का दान उसका सबसे उत्तम प्रयोग माना जाता है। यह एक परोपकार का कार्य है। यह दान यदि निस्वार्थ भाव से किया जाए, तो अधिक श्रेष्ठ हो जाता है। भारतीय संस्कृति में तो गुप्त दान की भी प्रशंसा की गइ है। गुप्त दान करने से अहंकार का जन्म नहीं होता है।

धन की दूसरी गति उसका उपयोग करना है। वास्तव में धन तभी सिद्ध होता है, जब उसका प्रयोग किया जाए। धन की सार्थकता उपयोग में ही है। यदि धन का प्रयोग न हो तो उसकी वृद्धि नहीं होती है।

धन की तीसरी गति दुर्गति होती है। मनुष्य जीवन भर अपने बच्चों के लिये धन एकत्रित करते हैं और उसका प्रयोग नहीं करते। ऐसा धन नष्ट होने के समान होता है। मनुष्य को यह याद रखना चाहिये, कि यदि उसके पुत्र योग्य हों, तो उनको माता-पिता के धन की आवश्यकता ही न होगी। यदि पुत्र योग्य न हों, तो वे धन का दु्रुपयोग करके उसका नाश कर देंगे।

धन को एकत्रित करके रखना, उसके उपयोग को रोकना, उसकी दुर्गति के समान है। अपने धन का कुछ हिस्सा ज़रूर उन लोगों में बाट देना चहिये, जिनको उसकी आवश्यकता हो। धन का प्रयोग सदैव सोच समझ के करना चाहिये।

एक सुहाना सफ़र ' भाग ५ '

मालूम हुआ कि रापिड सिटी मैं पुरे देश और परदेश से लोग यहाँ के मशहूर माउंट रुश्मोरे मेमोरियल पार्क देखने आता है और वहां के 'ब्लैक हिल्स' । इन टापुओं मैं कई सुंदर सुंदर गुफाएं भी थे जीने 'विंड केव्स' और 'रुश्मोरे केव्स' के नाम से जाना जता था | मन तो हमारा भी था यहाँ घूमने का परंतु समय बहुत कम था | केवल दो दिन बचे थे सियाटल पहुँचने मे वरना माई का वापसी का फ़्लाईट छूट जता | मैंने माई से कहा कि मिशिगन वापस लौटने पर मैं उसे वो सब जगह घुमा दूंगा| इस तरह हम जादा समय भी ले कर चलेंगे और जगह भी देखा हुआ होगा |
रात गुज़र गई और तीसरा दिन शुरू हो गया | जल्दी से समान गाडी मैं रख कर और नाश्ता कर के हम वैओमिंग के ओर निकल पड़े | वैओमिंग के सुन्देर्ता के बारे मैं बहुत सुना था और साऊथ डकोटा से निकल के कुछ देर बाद देख भी लिया | दूर से रोक्की पर्वतों कि झलक मिल गई | सरक के दोनों तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़ जिनके चोटी साल भर बर्फ से ढकी होती हैं | इन्हें देख के लग रह था जैसे वेह आकाश को छू रहे हैं | वईयोमिंग मैं केवल १०० मील चल कर हम मोंटाना मैं घुसे | ये हमारे सफ़र का सुबसे लम्बा और खूबसूरत जिला था | रोकी पर्वत और पास आ गये और आब हम इनके टापूओं पर चढ़ने लगे |

एक सुनेहरा सफ़र ' भाग ४ '

सुबेह हो गई | हमारे आगे आज बहुत लंबी सफ़र थी | बल्कि पिछले दिन हम १५० मील कम चला सके वो भी आज हमे पुरा करना था | ल्क्रोस्स से हम नाश्ता कर के ११ बजे सुबेह रवाना हुए | दिन बहुत खूबसूरत थी, आस्मान बिल्कुल नीला और साफ था | वैसे पश्चिमी मिचिगन के तरेह इल्लिनोई और विस्कोंसिन की भूमी मैं कुछ खास फर्क नहीं था | बॉर्डर पार कर मिनिसोटा मैं घुसते ही हमे सुंदर घटीं और झील नज़र आने लगे | अप्सूस हुआ कि हमारे पास केमरा नही था | सफ़र मैं पहले बार माई की संगती और गारी मैं लगी रेडियो के अलावा हमारा कुछ और ही मनोरंजन हुआ |
सड़क चौरी और सेंक्ड़ों मील तक बिल्कुल सीधी थी | साऊथ डकोटा मैं घुसने पर हमे छोटे-छोटे पहाड़ दिखने लगे | बीच मे किसी छोटे शेहेर मैं रूक कर हमने लंच किया और फिर मई ने कुछ देर तक गाडी चलाई | इस बीच मैंने गाडी मैं पिछे रखे समान से एक तकिया निकल कर एक घंटे कि नींद ले ली | साऊथ डकोटा थोरी सी सूखी हुई जगह थे, याहा हर्हाली कम सा लग रह था | रापिड सिटी पहुँचते पहुँचते १० बज गये | वैसे इतनी रात तक गाडी चलाने का इरादा नही था हमारा परंतु रस्ते मैं और शेहेर बहुत छोटे से थे और हमारा वहां रुकना मे सुरक्षा नही नज़र आ रहा था | और फिर हम पहड़ियों मैं अभी तक नही घुसे थे तो उसका भी खतरा नही था | उस रात होटल मिलना भी मुश्किल थे। सारी शेहेर छान मार ली थी पर सब होटल भर चुके थे | फिर किसी तरेह से होलीडे इन मैं एक कमरा हमे खली मिले जिसे हमने बे हिचक ले लिया।

महात्मा गांधी

मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869 में हुआ था | गांधी जी के जन्मदिन को गांधी जयनती के नाम से जाना जाता है | गांधी को भारत के राष्ट्रपिता के नाअम से भी जाना जाता है | भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम मे गांधीजी की महत्वपूर्ण भूमिका थी | उनका जन्म को गुजरात के पोरबन्दर शहर में हुआ था | उनके पिता का नाम कर्मचन्द और माँ का नाम पुतलीबाई था | पढ़ाई समाप्त करने के बाद वे इंग्लैंड गये। वहाँ जाने के पहले ही उनका विवाह कस्तूरबा से हो चुका था| इंग्लैंड मे गांधीजी ने कानून की पढ़ाई करी िथ|

गांधीजी ने कुच साल दक्षिण अफ्रिका मे िबताये थे | यहा पहली बार गांधीजी ने सत्याग्रह का प्रयोग िकया था | दक्षिण अफ़्रीका से भारत लौटने के बाद गांधीजी ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम मे िहस्सा िलया था | स्वतन्त्रता संग्राम में गांधीजी ने सत्याग्रह और दांडी मार्च शुरु िकया था|

30 जनवरी 1948 को नथूराम गोडसे ने उनकी हत्या की | हर साल 30 जनवरी को उनकी याद में दो िमनट का मौन रखा जाता है |