मंगलवार, 11 दिसंबर 2007

कोई प्रोफेस्सोर्स

प्रोफेस्सोर्स अपने विधार्तियों को मद्दत करते है। लेकिन कोई कोई प्रोफेस्सोर्स अपने कामों मे इतने फसे रहते है कि अपने विधार्तियों को कुछ मद्दत नही कर पते है। यह प्रोफेस्सोर्स अपने घर के बातों में इतने फसे रहते है। जैसे मेरे रिसर्च लैब के प्रोफेस्सर है। वह अपने स्टूडेंट्स को क़द्र नही करते है। मैं अभी इतनी दुखी हूँ। यह प्रोफेस्सर ने तो मुझे पागल ही कर दिया है। अब ऐसे लोगों को कुछ कह भी नही सकते हो क्योकि फिर कुछ उलटी सीधी बात कर्देंगे। मैं थक चुकी हूँ। मैं रिसर्च में एक हफ्ते में १२ घंटे काम करती हूँ। तब भी प्रोफेस्सर को कुछ फरक नही पढ़ता है। वह बस ये कहेते चले जाते है कि और काम करो। रिसर्च प्रोफेस्सर यह भूल जाते है कि मेरे और भी क्लास्सेस है। किया करूं? मैं अभी तीन दिन से नही सोई हूँ।

सोमवार, 10 दिसंबर 2007

दुबई
रेगिस्तान से एक आधुनिक शहर तक
कुनाल झाम



दुबई
- एक ऐसा शहर जो कल के शहरों के विकास के मिलान में एक दिन में बनाया गया हैदुबई एक ऐसा शहरहै जो दुनिया के मानचित्र पर एक छोटा बिन्दु बनाता हैपरन्तु आज कल अपने प्रगतिशील कामों से दुनिया मेंइतना हल्ला मचा रह है कि वह किसी को भी अपने से कही गुना ज्यादा बड़ा होने की दोखा दिला सकता हैकोइमानता है कि दुबई सोने का शहर है तो कोइ मानता है दुबई हर ग्राहक का स्वर्ग हैदुबई जैसे गातिक शहर के बारेमें बहुत कुछ कहा जा सकता है , परन्तु मेरे जैसे आम व्यक्ति के लिये यह शहर करीबन सत्र साल पहले मेरा घरबना और आज के नवीन इमारतों के बीच भी मेरा घर हैमैं आज आपको अपने इस घर के बारे में बताऊंगा

दुबई यूनईटेद अरब एमिरिट्स देश का मुख्य शहर हैयह शहर अरब रागिस्तान में स्थित है परन्तु आज कि इनविकासों के बीच इसे रागिस्तान का हिस्सा कहलाना बहुत मुश्किल हैतीस सालों के अन्दर यह शहर एक अनंतखुले मैदान से एक प्रधान नगर बन गया हैदुबई की तेज प्रगति के पीछे बहुत कारण है जो आज दुनिया के सबसेतेज गति से बढ़ने वाली शहरों कि सूची में इसे शामिल करवाता हैदुबई की सरकार अपने सोच में बहुतआधुनिक और सीधे है, जो अनेक देशों से लोगों को आकर्षित करता रहा हैंदुबई में राजकर होने के कारणबहुत से विदेशी नियंत्रित कंपनियों ने दुबई mein मध्य पुर्वी देशों के साथ व्यापर करने के लिये अपना अड्डाबनाया हैदुबई अफ्रीकी, यूरोपीय और एशियाई देशो के बहुत ही करीब स्थित हैअतः हर साल इन देशो सेअनगिनत व्यापारियों अपने कारोबार को बढ़ाने के लिये दुबई में अपने व्यापर की स्थापना करते हैअन्य अरबदेशों की तरह दुबई को सुव्यवस्था भी तेल पर आश्रित थी, परन्तु छोटे, मध्यम और बढ़े व्यापारियों कि स्थापनाओंकी वजह से उसकी सुव्यवस्था अब मुख्य रूप से कारोबारों पर आधारित हैंइस लिये दुबई को मध्य पुर्वी देशों कासंचार और व्यापर केन्द्र माना जाता हैअरब देश का एक शहर होने के कारण हर कोइ सोचता है कि अन्य अरबदेशों जैसे दुबई में भी अधिक संख्या अरबियों कि संख्या होगी, परन्तु सच तो यह है कि दुबई कि जन संख्या में सेसिर्फ १५ % अरब हैंबाक़ी के ८५ % आबादी भारतीय, पाकिस्तानी, बंगलादेशी, फिलिपीनो और यूरोपीय लोगमुख्य रूप से बनाते हैअरब देश होने के बावजूत इतनी विभिन्नता के कारण दुबई को एक अपूर्व देश माना जाताहैइन सांस्कृतिक भेदों के बीच दुबई ने अपना खुद का एक संस्कृति विकसित किया है जिसे हर कोइ व्यक्तिदुनिया के किसी भी कोने से आकर स्वीकार कर सकता हैयही है दुबई के माहौल का कमाल!

अब जो मैंने आपको दुबई शहर का परिचय दे दिया है, मैं आपको एस विषय को चुनने का कारण बताना चाहूँगामैं आत्मविश्वास के साथ कह सकता हूँ कि मुझे किसी अनजान देश मी किसी अजनबी से बात करना कभीमुश्किल नही पड़ेगा - बस यह बात छेड़ने पर कि मैं दुबई से हूँ, सब जिज्ञासु आखों से मेरी ओर देखकर मुझ सेदुबई के बारे में प्रशन पूछना शुरू कर लेते हैंहर किसी के कौतुहल का कारण दुबई के अनगिनत अनुपम विकासहै जिसका परिणाम ऐसे अपूर्व इमारते हैं जो दुनिया में और कही नही मिलेंगेदुबई के इस बढ़ती आम्पसंदी परनजर डालने के लिये मैंने यह विषय चुना हैसाथ ही साथ मैं दुबई के विकास पर अपने विचारों को पेश करनाचाहूँगाखबरों में दुबई का एक बहुत ही खूबसूरत तस्वीर बनाया जाता हैं परन्तु मुझ जैसा निवासी ही इस प्रगतिका कीमत जानता हैं जो हम सब को बहुत भारी पड़ रहा हैं

आओं दुबई के इन विकासों पर रोशनी डाले२००२ तक दुबई कि स्थावर सम्पदा शेत्र घरेलू और छोटा थाइसकाकारण यह था की विदेशियों को दुबई में ज़मीन खरीदने कि अनुमति नही थीसरकार के अनुसार सिर्फ अरबलोग दुबई में ज़मीन खरीद सकते थेहर विदेशी हर साल अपने घर और अपने दफ्तर का किराया अपने ज़मींदारको देते थेचाहे कोई क्यों कितने भी सालों से एक घर में रहता रहा हो , वह भी इस घर का मालिक नही बनसकता हैदुबई में राजकर नही है पर यह किराये का व्यवस्था एक किसम का कर ही माना जाता हैपरन्तु सन्२००२ में दुबई के शासक ने यह नियम मिटा दिया जो आज के प्रगति का मुख्य कारण हैउस वर्ष के बाद कोई भीदुबई में सम्पति प्राप्त कर सकता हैदुबई के इस विभिन्न माहौल में हर कोई अमीर व्यक्ति रहना चाहता है औरचारों ओर से दुबई के स्थावर संपदाओं में लोग रूपया लगा रहे हैहर किसी को पता था कि इस नए मार्केट मेंरूपया डालने से हर किसी को मुनाफा होगा , जहाँ से दुबई के अनगिनत निराले अनुमान की शुरुवात हुई
दुनिया का हर कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति आज 'बुर्ज अल अरब' को जानता हैयह होटल दुनिया का सबसे ऊँचा औरसबसे विशाल होटल हैइस इमारत की स्थापना होने पर यह दुनिया का अकेला होटल था जो 'सेवेन स्टार ' होटलमाना जाता थाइस होटल ने दुबई को पूरे दुनिया के सामने एक पहचान दी और दुनिया के उमंगी निशेशको कोअपने ओर आकर्षित किया । 'दुबई इंटरनेट सिटी ' और 'दुबई मीडिया सिटी' द्वारा हर कोई माध्यम या अपनेव्यापार की स्थापना आसानी से कर सकता है । 'दुबई इंटरनेट सिटी' में 'मईक्रोसोफ्त' , 'रॉयटर्स' , 'सोनी' इत्यादिजैसे विश्वीय कंपनियों ने दुबई को अपने कारोबार का महेत्व्पूर्ण केंद्र बनाया हैइन इमारतों में तकनीकीअवसंरचना का तुलना दुनिया के उच्चतर व्यापार केन्द्रों से किया जा सकता है । 'दुबई मरीना ' प्रोजेक्ट के समाप्तहोने पर वह दुनिया का सबसे बड़ा आवासी परियोजना है जिसमे ४० इमारतें की स्थापना २००७ में हो गयीदुबईके शासकों ने सोचा कि क्यों सम्पति को एक नया रुप दें? इस विचार को मानव निर्मित द्वीप द्वारा पूरा कियादुनिया के हर कोने से इस परियोजना को जीवित करने के लिए निर्माता बुलाये गए और 'पाम डेरा ' , 'पाम जुमैरा ' और 'पाम जबल अली ' परियोज्नाये को बनाने का निश्चय कियाइन मानव द्वीपों को खजूर के पेड़ के आकार मेंबनाया जा रहा हैइन द्वीपों पर शेह्र को झेलने की योजना की जा रही है जिस से इन द्वीपों पर हर किसी मनोहरताका प्रबंध किया जाएगा

बुर्ज दुबई इमारत आज दुनिया का सबसे उंच इमारत हैइस परियोजना को समाप्त होने में अभी तक साल सेज्यादा वक्त बचा है और समाप्त होने पर यह इमारत आसमान को छूता हुआ आठ सौ मीटर तक खड़ा होगाअपनेही सफलता को चुनौती देते हुए 'अल बुर्ज' नमक इमारत की स्थापना करने की घोषणा की गयी है जो हजार मीटरके ऊँचाई को पार करेगा । 'दुबई मॉल ' बुर्ज दुबई के इमारत के सामने बनाया जा रह है जो दुनिया का सबसेविशाल मॉल होगा

इन सब परियोजनाओं के अलावा ऐसे और भी अजीब निर्माणों की घोषणा की गयी है जो दुनिया में और कही भीकिसी ने बनाने की सोच भी नही की होगी।' हईद्रौपलीस' दुनिया का पहला होटल होगा जो पानी के बीस मीटर नीचेबनाया जाएगा । ' वर्ल्ड ' दुनिया के रुप में एक मानव निर्मित द्वीप होने वाला है जो छोटे छोटे द्वीपों से बनायाजाएगाइन द्वीपों को सिर्फ एक पूरे द्वीप जैसा खरीदा जा सकता है जिसे सिर्फ पानी या हवाई जहाज द्वारा पंहुचाजा सकता हैइन परियोजनाओं की सूची की कोइ अंत ही नही हैंदुबई के इन अजीब परियोजनाओं की सूची कीकोइ अंत ही नहीं हैदुबई के इन अजीब परियोजनाए मी पैसा डालने के लिये बहुत से ऐसे लोग है जिनके बैंकबैलेंस पर इसका कोइ असर नहीं पड़ता

आप यही सोच रहे होंगे कि इन सब निर्माणों को समाप्त करने के लिये और दुबई के इस ख्वाब को पुरा करने केलिये लोग कहाँ से रहे हैं? भारत और पाकिस्तान जैसे देशों के करीब होने के कारण हर रोज बहुत सारे श्रमिकइन इमारतों को खड़ा करने के लिये और अपने परिवार के लिये रोजी रोटी कमाने के लिये जाते हैंयुनईतेदअरब एमिरिट्स की जन संख्या में से ८० % श्रमिक लोग बनाते हैंहर कोइ जाता अपने दिल के अरमानों पुराकरने को परन्तु रह जाता हैं निराश, लाचार और थका हुआसभी लोग जानते है दुबई कि प्रगति कि कहानीपरबहुत कम लोग दुबई में मानव अधिकार के अतिक्रमण के बारे में जानते हैकहना हैं कि आठ मजदूरों को एकसाथ कमरे में रहने का प्रबंध किया जाता हैंदुबई के घर्मी के मौसम में कड़ी धूप में काम करवाया जाता हैमहिनूंभर कि तन्ख्वा मजदूरों को नहीं दिया जाता है जिनकी वजह से वे घर पैसे नहीं भेज सकतेवे खड़े करते हैं दुनियाके अन्य अजूबे परन्तु खुद रोजी रोटी कर चैन कि नींद तक नहीं सो सकता हैक्या यही इन्साफ है?

आजकल बहुत सरे निवासियों इन मजदूरों पर दया खाकर पानी और खाने का बंदवस्त कर रहे हैदुबई में स्थितभारत के कौंस्लेट ने इस बात कि योजना भारत कि सरकार से भी की जिसके कारण दुनिया को दुबई स्थितनिर्माण कंपनियों के इन काले करतूतों के बारे में पता चाल रहा हैसं २००६ में कुछ मजदूरों ने अपने स्थिति सेखुश होने पर बुर्ज दुबई के दफ्तरों मी काफी तोड़ फोड़ किया और सरकार को इस नाइंसाफी के बारे में सूचितकिया

हम आम निवासियों की स्थिति भी कुछ ऐसे ही है - परेशान, लाचार और थका हुआपहले तो इन सब नएनिर्माणों के बारे में सुनकर सभी चौंके हुए थे और गर्व से अपने घरवालो से इन निर्माणों के बारे में बात छेड़ते थेपरन्तु जैसे वक्त बढता गया , रास्ते खराब होते गए साथ ही साथ यातायात भी काफी बढ़ गया जिसकी वजह सेपांच किलोमीटर की दुरी को सफर करने के लिये एक घंटा लग जाताआज दुबई की स्थिति काफी गंभीर हो गयीहै

इन सब परियोजनोओं के कारण दुबई की जन संख्या पिछले पांच सालो मी दुगनी हो गई है और इन सब नएनिवासियों और निर्माणों को झेलने के लिये दुबिया शहर काफी कठिनाईयों का सामना कर रहा हैंकुछ ही दिनपहले पूरे दुबई की बिजली एक पूरे दिन के लिये चली गयी थी - दुबई का पुरा कारोबार बंद पड़ गया था औरकंपनियों को बहुत नुकसान हुआ थाइसका कारण इन ढेर सारे परियोजनाए ही थी जो बहुत बिजली इस्तिमालकर रही थी

दुबई के उत्तर ओर को, जहाँ इन सब निर्माणों का प्रबंध हो रह हैं, 'नया दुबई' का नाम दिया गया हैक्या दुबई किकमजोर मिटटी इस नये दुबई को झेल सकेगी? क्या दुबई के इस प्राकृतिक खिलवाड़ का असर हिम आमनिवासियों पर पड़ेगा? हमारे घर का किराया इन निर्माणों की वजह से हर साल बढ़ रह है और बुर्ज दुबई के सामनेही होने के कारण दो चार साल में दुगना होने की सम्भावना रखता हैसिर्फ नए इमारतों को खरीदा जा सकता हैपुराने इमारतों और मकानों मी रहने वाले किराया देते रहेंगे जब तक सरकार कोइ नया नियम बनाती हैक्या हमकई सालों से रहने वाले निवासियों को बढ़ते हुए निर्वाह व्यय के कारण कही और अपना घर बसना पड़ेगा? इन सबबड़ते हुए उठावों कि वजह से कंपनियों भी बहुत सरे कर्मचारियों को काम से निकाल रहे हैं

हर देश कि प्रग्रती जरुरी है - परन्तु इस प्रग्रती का भी कोइ हद होता है जो शहर के स्थिरता के लिये जरुरी हैलगता है बहुत जल्दी दुबई इस हद को पार करके अस्थिरता की ओर बढ़ रहा हैं

इन परियोजनाओं का सपना तो दुबई ने दिखा लिया है - अब वक्त ही बताएगा कि दुबई अपना इस एक दिन मेंनवीन शहर को खड़ा करने का सपना पूरा कर पायेगा या नही

बुधवार, 5 दिसंबर 2007

क्रिसमस

क्रिसमस इसाई समुदाय के लोगों का महापर्व है। यह पर्व हर वर्ष 25 दिसम्बर को मनाया जाता है । इस दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था । सभी इसाई ईसा मसीह की शिक्षाओं को ही अपने धर्म का मूल आधार मानाते हैं । ईसा मसीह को जीसस क्राइस्ट भी कहते हैं । ईसाई मानते हैं की ईश्वर ने इस संसार की रचना की है तथा अपने दूतों के माध्यम से लोगों को संदेश देते हैं । ईश्वर के पुत्र जीसस इस धरती पर लोगों को जीवन की शिक्षा देने के लिये आये थे। जीसस ने कहा था कि ईश्वर सभी व्यक्तियों से प्यार करते हैं तथा हमें प्रेम को जीवन में अपनाकर ईश्वर की सेवा करनी चाहिये । ईश्वर की सेवा का सबसे उत्तम मार्ग दीन दुखियों की सेवा करना है । क्रिसमस का त्योहार हमें यही पावन संदेश देता है।

ईसाइ परिवारों में क्रिसमस की तैयारी कई दिनों पूर्व से ही होने लगती है । दुकानें सजाई जाती हैं व तरह-तरह के केक - मिठाइयाँ मिलती हैं ।क्रिसमस के दिन एक दूसरे को केक व अन्य उपहार बाँटे जाते हैं तथा क्रिसमस की बधाइयाँ दी जाती हैं । चारों ओर उत्सव व उल्लास का समा बन्ध जाता है । घरों के आंगन में क्रिसमस ट्री लगाने तथा इसे खूबसूरती से सजाने का रिवाज़ भी है । चर्च व ईसाइघरों में मोंमबत्तियाँ जलाकर सामूहिक पूजा होती है ।

क्रिसमस का त्योहार जनसमुदाय को भाईचारा, मानवता व परोपकार का पावन संदेश देता है । यह उत्सव सुख, शांति व समृद्धि का सूचक है।

समय का सदुपयोग

समय संसार की सबसे बहुमूल्य चीज़ है क्योंकि एक बार गुज़रा हुआ समय कभी वापिस नहीं आता । 'टाईम इज़ मनी' अर्थात 'समय धन है ' की अवधारणा किसी भी काल में झुठलाई नहीं जा सकती । समय को व्यर्थ करना संसार की सबसे बड़ी मूर्खता है । जन्म से मरण तक का समय व्यक्ति का अपना है , यह चूक जाये तो फिर कुछ भी हाथ नहीं लग सकता ।

आलसी व्यक्ति समय को यूँ ही गवाँ देता है, अपने कार्य को कल पर छोड़ने वाला यानी भविष्य में करने की बात करने वाला ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेता है । अभी जो समय गुज़र रहा है क्या कभी इसको वापिस लाया जा सकता है ? यदि नहीं तो फिर हम किस प्रकार समय का सदुपयोग करने वाली बात भुला सकते हैं ? गाँधीजी न केवल धन की पाई-पाई का हिसाब रखते थे परन्तु समय के क्षण-क्षण का भी हिसाब रखते थे ।संसार में ऐसा कौन सा महापुरुष हुआ है जिन्होने समय की महत्ता को नहीं समझा हो ? समय को काटने भर की जिन्हें फिक्र हो वे कभी भी इसके मूल्य को नहीं समझ पाते हैं और अंत में हाथ मलते देखे जाते हैं ।

समय का सदुपयोग बुद्धिमान व्यक्ति ही कर पाते हैं अधिकतर लोग तो व्यर्थ ही समय गपशप, लड़ाई-झगड़े, अहंकार के प्रदर्शन , आडंबर आदि में बरबाद करते हैं ।विद्यार्थी पढ़ाई करने की जगह घंटों टीवी देखने में नष्ट करते हैं । कुछ लोग दूसरों की निंदा करने में समय गवाँ देते हैं ।

समय का सदुपयोग तभी सम्भव है जब हम इसकी आदत डाल लें । कुछ न करने से कुछ करना अच्छा है , इसकी जिन्हें समझ है वे दौड़ में बहुत आगे चले जाते हैं । समय को पकड़ कर रखना सम्भव नहीं है , यह तो भागा ही चला जाता है। अतः एक एक क्षण बहुमूल्य है समझकर उसका सदुपयोग करना ज़रूरी है ।

संस्कृत भाषा


संस्कृत भाषा भारत की ग़ौरवमय अतीत का मुकुट है। संस्कृत भाषा एक अमूल्य एवं अनुपम नीधी है । प्राचीन काल से हमारे जीवन पर उसका बहुत प्रभाव पड़ा है। इस भाषा को हम देव भाषा भी कहते है। संस्कृत जाति, क्षेत्र तथा काल से परे समस्त मानव समाज की भाषा है। सांस्कृतीक वीकास का जैसा चित्रण संस्कृत साहित्य में उपलब्ध है, वैसा चरित्र कहीं और पाना दुर्लभ है । हमारे उपनीषद, रामायण ,महाभारत ,गीता और भागवत वेद पूराण, सभी संस्कृत भाषा में हैं और इनका विश्व भर प्रचार है। जर्मन ,ग्रीक, लैटिन भाषा में संस्कृत विषय पर अनेक ग्रंथ लीखे गये हैं।

मुग़ल बादशाहों के द्वारा पुस्तकालयों के जला देने के उपरांत भी आज संस्कृत के 60000 से अधिक ग्रंथ उपलब्ध हैं। जर्मनी , फ़्रांस, इंग्लेण्डस्ट्रेलीया, अमेरीका आदी देशों के वीद्वानों को संस्कृत भाषा ने आकर्षित कर दिया है। वे लोग आज भी भारत आकर संस्कृत के ग्रंथो में ज्ञान ढुँदते है। आयुर्वेद, चीकीत्सा एवं योग तथा प्रणायाम आदी संस्कृत में लीखे वेदों और पुरणों की देन हैं।

विज्ञान के क्षेत्र में भी संस्कृत का बहुत बड़ा योगदान रहा है । आयुर्वेदिक और ज्योतिष शास्त्रों के ज्ञान ने विश्व को एक बड़ी दीशा दी है। संस्कृत भाषा विश्व की प्राचीनतम भाषा है। इसे साहित्य का सबसे बड़ा भंडार होने का गौरव प्राप्त है। संस्कृत विश्व को सही दीशा देती है । विश्व की प्रगती संस्कृत भाषा की बहुत बड़ी देन है।

क्या पैसा सब कुच्छ है?


पैसा सब लोगो की बडी चाहत! समाज में ऊचा दर्जा, मन चाहिए गाडीया और कुच्छ भी खरीदने की ताकत्।कौन नही चाहता ऐसी चीज़े!

सॅमुएल एल जॅक्सन ने एक बार कहा था कि ‘जो लोग कहते है कि पैसा सब कुच्छ नही होता उन्होंने कभी पैसा देखा ही नहीं।

लेकिन मैं इस बात से सहमत नही हूँ। मुझे नही लगता कि पैसे से दुनिया की सारी खुशियों मिलती है।पैसे का खुदका एक महत्व है । पर हमें पैसे की लालच में फ़स नही जाना चाहिए और इस बात को जानना चाहिए कि परिवार और दुसरे लोगो के साथ अच्छा बरताव और भी ज्यादा महत्व रखते है।

पर सारे संसार में लोग अपने फ़ायदे के लिये दुसरो को फ़साते है। कभी कभी दुसरों का खून तक कर लेते हैं।इस्सी कारण मेरे मन में ऐसा विचार आत है के दिलों में पैसो के अलावा और किसी के लिये प्यार है कि नहीं?

मुझे शायद पैसे की लालच नहीं है क्योंकि जन्म से ही मेरे घर में कभी पैसो की कमी नही थी । हर किसी का अपना विचार होता है और अपनी खुदकी ज़रूरतें ।

पढाई


कई लोग बारावी कक्ष के पढाई को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। मैं भी उन लोगों में से एक था लेकिन मिशिगन आने के बाद मेरी राय बदल गयी है। यह तो मेरे मूल विषय से तो अलग बात हो गयी।

मैंने बारावी कक्षा को बहुत महत्व नही दिया था और इसी लिये मेरे अंक मेरी इच्छा के अनुसार नही आये। खैर जो बीत गया वो बीत गया लेकिन मैं बहुत बार सोचता हूँ की अगर मैं ठीक तरह से पढ्ता तो उसका मेरी आज के ज़िंदगी में क्या परिणाम होता।

मेरा यह मानना है कि अगर हम एक साल के लिये मन लगाकर पढे तो हमारे मन में पढाई के लिये मानो एक अनोखी जगह बन जाती है। हम पढाई को कभी टालते नही और ‘आज करे सो अब कर’ को सिद्ध कर सकते हैं। परंतु पहला एक साल बहुत मुश्किल होगा क्योंकि इस समय में हमें हमारी बचपन से चली आयी बुरी आदतों को बदलना होगा।

यह बात मैंने खुद महसूस की है। अगर मैं कुच्छ चार दिन ठीक तरह से पढता हुं तो पाच्वें दिन की पढाई बहुत आसान लगती है। यह सिर्फ़ अच्छे आदत की बात है जो हमे खुद मैं डालनी है।

मैं यह आशा करता हूँ कि एक दिन सब लोग इस बात को जान जायेंगे और खुद को सुधारेंगे।

सति

सति एक हिंदु धर्म की प्रथा है बल्कि थी जिसमें एक विधवा औरत को अपनी जान कुर्बान करनी होती उसके ही पती के क्रिया कर्म के वक्त्। इस प्रथा की शुरुआत लोग मान्ते है ऐसे हुई- जब दक्षायणि अपने पती शिवा का अपमान अपने पिता दक्षा से नही सह सकी तब उन्होंने अपनी जान कुर्बान कर दी। परंतु आज के दिन सति के विरुद्ध ऐसे सक्त नियम हैं जिसके कारण सति की प्रथा अब काफ़ी हद तक बंद हो गयी है।
400 ए-डी में गुप्ता राज के अंत तक यह प्रथा तो बहुत ही मशहूर हो गयी थी। परंतु कई पुस्तकों के अनुसार यह प्रथा महाभारत के वक्त भी कायम थी। फ़िर इसके बाद राजस्थान और अनेक पश्चिम भारतीय प्रांतों में यह प्रथा शुरू हुई की इन मरे हुए विध्वाओं की श्रद्धा में पत्थरों को मंदिर में रखकर पूजा की जाती थी।
इसके इलावा बेंगाल में भी सति बहुत देखी जा सकती थी।1813-1828 इन पंद्रह सालों में करीबन 8000 औरतों की म्रुत्यु सति के कार्ण हुई। इन दिनो राजा राम मोहन रॉय ने सति के विरुद्ध लढाई शुरू की और वे काफ़ी सफ़ल रहे। मोगल राज्य में इस प्रथा का कोई निशाना नही दिख रहा था जबकि सारे देश में खास करके पश्चिम में तो बहुत सारे केसिस थे सति के।
-ॠषित दवे

जेफ़्री आर्चर

जेफ़्री आर्चर एक ब्रितानी लेखक है जो दुनिया भर में मशहूर है और मेरे भी सबसे प्रिय लेखक है।वे एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ भी रह चुके है परंतु बहुत विवादों के कारण वे जेल भी जा चुके। यहा जेल में उन्होंए तीन किताबें लिखी जो बहुत ही मशहूर बनी।
उनका जनम लंदन में हुआ और वे समरसेट में बडे हुए। वे फ़िर ऑक्स्फ़र्ड महाविद्यालय में शिक्षक भी बने। इसके बाद वे अनेक चॅरिटीज़ के लिये काम करने लगे और उन्होंने युनाय्टेड नेशन्स के चॅरिटी के लिये भी काम किय जहा विवादों ने उनका साथ नहीं छोडा कि वे पैसे खा रहे थे।
उनकी पहली किताब थी- ‘नॉट अ पेनी मोर, नॉट अ पेनी लेस’ जो मुझे बहुत ही पसंद है।
इसके बाद उन्होंने केन ऍंड एबल लिखि जो बहुत ही प्रसिद्ध थी और न्यु यॉर्क टाईम्स बेस्ट सेलर्स के लिस्ट में भी पहुँच गयी। इस किताब को टि-वी पर एक छोटी सी सिरीयल के रूप में भी देखा गया।
इसके बाद उनकी एक किताब आयी सन्स ऑफ़ फ़ॉर्च्युन जो बहुत ही अच्छी थी और इसी किताब की वजह से में उनकी सारी किताबें पढने लगा।
-ॠषित दवे

मंगलवार, 4 दिसंबर 2007

असफलता ही सफलता की कुंजी है

प्रायः सफलता प्राप्त करने पर हमारी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता
है और हमारा लक्ष्य पूरा होता दिखाई देता है । परंतु यदि थोड़ी भी असफलता मिलती है तो हम निराश और दुखी हो जाते है हमें एसा नहीं सोचना चाहिए । असफलता हमें यह ज्ञात दिलाती है, कि हमसे अधिक परिश्रम करने वाला कोई दूसरा भी हो सकता है, और इस प्रकार हमारे मन में अधिक प्रयत्न करने की इछा जागृत करती है । असफलता हमें अधिक परिश्रम करने के लिए प्रेरित करती है । सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, इसलिए हमें असफल होने पर निराश नहीं होना चाहिए ।

जीवन में असफलता का मूँह देखना भी ज़रूरी होता है । लगातार सफलता प्राप्त करने से मनुष्य के मन में अहंकार की भावना आ जाती है । अहंकार हमारे मानवीय गुणों के विकास में व्यवधान पैदा करता है । अहंकार मनुष्य के सभी गुणों को नष्ट कर देता है ।

जिस प्रकार रात्रि के उपरांत सूर्योदय का होना निश्चित है, उसी प्रकार असफलता के पश्चात सफलता का होना भी निश्चित है । असफलता, सफलता के प्रयासों में निरंतरता लाती है । इसलिए हमें असफल होने पर घबराना नहीं चाहिए। असफ़लता तो हमें अपना मार्ग दिखाती है और हमारे जीवन के लक्ष्य पूर्ति के प्रयासों में निरंतरता लाती है। इसलिए हमें दोनो को एक समान समझना चाहिए । हमारे जीवन के लिए दोनों ही आवश्यक हैं ।