मंगलवार, 30 सितंबर 2008
इस हफ्ते
‘बापू’
गांधी जी के सम्मान मे 2 अक्तूबर भारत मे राष्ट्रीय छुट्टी होती है। शहर-शहर मे लोग ‘बापू’ और उनके आदर्शों को याद करते हैं। दिल्ली मे राजघाट पर अन्य धर्म के लोग एक साथ मिलकर पूजा करते हैं। सभी धर्मों की पवित्र पुस्तकों से पाठ पढ़े जाते है।
बापू का सपना था कि हिंदु, मुसलमान, सिख, इसाई आदि धर्म के लोग भारत मे एक साथ अमन से रहें। आज़ादी के दिन उनका सपना टूट गया। आज़ादी के दिन, हिंदु और मुसलमानों के बीच दंगों के कारण सैकड़ो लोगों की जान गयी। उस दिन से हालात मे थोड़ा सुधार तो आया है, परंतु अभी भी दोनो धर्मों के लोगों के बीच तनाव की स्थिति बन जाती है। परंतु, बापू के जन्मदिन पर सब लोग अपने मतभेद भूलकर एक साथ उनके आदर्शों को याद करते हैं।
यही है हमारे राष्ट्रपिता की ताकत। उनका शरीर हमें बहुत साल पहले छोड़ गया, परंतु आज भी, केवल उनकी सोच हमारे देश को एक कर सकती है।
सोमवार, 29 सितंबर 2008
गुरू की महिमा
गुरू ही हमें गोविन्द अर्थात् परमात्मा से भी मिलाने का रास्ता बताते है इसलिए परमात्मा से पहले गुरू का सम्मान किया गया हैं। जिस राष्ट्र में गुरूओं का सम्मान नही होगा उस राष्ट्रª का पतन अवश्यभावी है।
राजाओं के समय में भी गुरूओं को सदैव उचित सम्मान मिलता रहा हैं यहाँ तक कि वो अपनी सभाओं में राज्य ज्योतिषी तथा नीतिगत राज्य चलाने के लिए धर्म गुरूओं को भी सभाओं में सर्वोच्च स्थान देते थे ताकि राज्य को नीतिपूर्वक चलाया जा सकें। आदि काल से गुरूओं को उचित सम्मान मिलता रहा हैं और गुरूओं के द्वारा ही बनायी गयी मार्गदर्शिता, मर्यादाये राष्ट्र का निर्माण एवं विकास करती रही। आज भी देश एवं राष्ट्र को सुदृढ़, सुसुक्षित एवं सुयोग्य बनाने में गुरूओं का भारी योगदान है।
माता-पिता
‘‘ बेटा पिषाच बन जो ले कलेजा काट निकाल
तो भी उस कटे कलेजे से निकलेगा जीते रहो लाल‘‘
पिता का स्थान तो आकाश से भी ऊँचा है क्योंकि बेटे के लिए पिता के अरमान आकाष से भी ऊँचे होते है दूनिया में कोई भी किसी को अपने से आगे बढ़ता हुआ और ऊँचा उठता हुआ नही देख पाता है परन्तु एक पिता है जो अपनी संतान को अपने से ऊपर एवं बहुत ऊँचा देखना चाहता है तथा अपनी पूर्ण जिन्दगी संतानों के सुखों के लिए न्योछावर कर देता है।
‘‘धन्य है वे जो अपने माता-पिता का करते है मान
प्रभु भी करते है ऐसे लोगों का सम्मान‘‘
रविवार, 28 सितंबर 2008
'ए वेडनेसडे': फिल्म समीक्षा
नसीरूद्दीन शाह, अनुपम खेर और जिम्मी शेरगिल ने पिक्चर के मुख्य चरित्रों की भूमिका निभाई है। कहानी एक बुधवार को मुम्बई मे दो से छः बजे के बीच होने वाली घटनाओं की है। एक आदमी (नसीरूद्दीन शाह) पुलीस कमिश्नर प्रकाश राठोर (अनुपम खेर) को फोन करके धमकाता है कि यदि 4 खतरनाक आतंकवादियों को छः बजे से पहले जेल से रिहा न किया जाए, तो वह मुम्बई मे जगह-जगह बम विस्फोट कर देगा। राठोर इस आदमी को रोकने की पूरी कोशिश करता है। अंत मे कहानी मे ऐसा घुमाव आता है जिस्से निर्देशक एवं अभिनेताओं की बेहतरीन कला का प्रदर्शन होता है।
यह पिक्चर आम हिन्दी पिक्चरों से काफी अलग है। न तो इसमे गाने हैं, और इसकी लम्बाई केवल डेढ़ घंटे की है। इस पिक्चर का मकसद है आम आदमी का दुनिया देखने का नज़रिया बदलना। इसको ज़रूर देखिए। शायद आपका नज़रिया भी बदल जाए।
शनिवार, 27 सितंबर 2008
चमड़ी
सेहद ख़राब होने की द्रष्टिकोण पर वापस लौटकर, हम यह कह सकते हैं कि ख़राब खाल से शरारीरिक असर ही नहीं परन्तु मानसिक असर भी पड़ता है देखें तो चमडी से सम्बंधित बीमारयों में एक आम वाला एक्जीमा है सिंगापुर में मेरी कक्षा में एक विद्यार्थी को इस बीमारी की बदकिस्मती थी और साफ़ साफ़ नज़र आता था कि वह अपने दैनिक कार्यों पर ध्यान नहीं दे पाता था कक्षा में बैठे वह अपनी चमडी को नोचता रहता था और दिन के अंत में उसे इतना गुस्सा आता था कि वह गृहकार्य समय पर पूर्ण नहीं कर पाता था अगर यह उसके मुश्किलों को प्रमाणित नहीं करता है तो आप उसकी परीक्षा की हालत सुनो एक दफा उसने आधे से कम परीक्षा ख़तम करके अध्यापक को पेपर दे दिया और जब उसे पूछा गया तो उसने एक ही पंक्ति में जवाब दी, " माफ़ कीजियेगा, मैं आधे समय खारिश कर रहा था"
बुरी चमड़ी हमारे शारीरिक और मानसिक योग्यताओं को ही ख़राब नहीं करती है परन्तु हमारे शरीर के दूसरे अंगों की योग्यताओं को भी ख़राब कर देती हैं कभी कभी चेहरे पे अगर मोटे मोटे ढेर उग जायें, तो देखने और सून्गने में अधिक कठिनाई आ जाती हैं और दिन ब दिन आसान कार्य पूरे करना उन लोगों के लिए असंभव हो जाता है
मैं बाहर हर माता पिता से निवेदन करना चाहूँगा कि छोटी उमर में ही अपने बच्चों की खाल की देखभाल करें ताकि उनके बच्चों और उनकों पछताना न पड़े!
मंगलवार, 23 सितंबर 2008
खेल का महत्व
स्वस्थ रहने के अलावा, खेल में भाग लेने से हम दोस्ती और विश्वास के सहानुभूतियों को बड़ा सकते
हैं अक्सर कहा जाता है की खेल से ही बन्दे का असली रूप दिख जाता है मैं इस छोटी कहावत को पूरी तरह से मानता हूँ क्योंकि मैंने अपनी आंखों से अपने ही दोस्तों को खेल के मैदान पर बदलते हुए देखा है यह शायद इसलिए होता है क्योंकि मैदान पर मुकाबले पर हर खिलाड़ी का दिमाग इतना व्यस्त रहता है की वह बिना सोचे अपने को पराया बना देता है परन्तु मैं मानता हूँ कि दिन के अंत में, अतिरिक्त समय एक साथ खेलने के पश्चात लोगों के बीच प्यार की सम्भावना बढती है और क्यों न कभी कभी यहाँ वहां असम्मति हो- दोस्ती लडाई से दुश्मनी तो नहीं बन जाती ना?
आज भी कुछ समाजों में खेल को उतना महत्व नहीं दिया जाता है जितना ज़रूरी है माता पिता आज भी चाहतें हैं की उनका बेटा क्रिकेट खिलाड़ी की जगह डाक्टर बने या फिर फुटबॉल मारने की जगह घर के शांत वातावरण में किताब पड़े मैं इनकी रायों का सम्मान ज़रूर करता हूँ लेकिन मैं नहीं मानता कि शिश्य के लिए पूरी तरह से खेल बंद करना चाहिए खेल के महत्व को समाज के हर व्यक्ति को समझना चाहिए और इस संदेश को प्रसारण करने में अगर मैं कुछ कर सकता हूँ तो निह्स्संकोच होकर करूंगा
सोमवार, 22 सितंबर 2008
यदि मै राजनेता होता तो क्या करता
पर्यावरण
रविवार, 21 सितंबर 2008
मै घर से निकलने ही वाला था जब डाकिया आया और मेरे हाथ मे चिट्ठी दे गया। चिट्ठी मिशिगन विश्वविद्यालय से थी। मुझे उत्तेजना से पेट मे गुदगुदी होने लगी। गाड़ी मे बैठते ही मैने चिट्ठी खोली। जैसे ही मैने पढ़ा कि मुझे मिशिगन विश्वविद्यालय मे दखिला मिल गया है, मै फूला न समाया। मैने तुरंत अपनी माँ और भाई-बहन को टेलीफ़ोन करके खुशख़बरी सुनाई।
उस दिन के पाँच महीने बाद मै दिल्ली छोड़कर मिशिगन आया। यहाँ तीन साल कब और कहाँ बीते, मुझे पता ही नही चला। आज मै ज़िंदगी के अगले मुकाम पर खड़ा हूँ। इस बार मै आमदनी प्राप्त करने के लिए नौकरी ढूंढ रहा हूँ। परन्तु अर्थव्यवस्था की दशा के कारण, इस मुकाम को पार करना असंभव लग रहा है।
माया
चेहरे पर मुस्कराहट
पठरी पे रेल गाड़ी
और दिल मे केवल चाहत।
लोगों की नदियों मे
मै खड़ा था अकेला
इंतज़ार की घड़ी को
साहस से मैने झेला।
सूरज ढल रहा था
होने लगा अंधेरा
ढलती रोशनी मे
दिखा न उसका चेहरा।
जब कहीं नही दिखी वो
मन थोड़ा सा घबराया
नज़र इधर से उधर गयी
परन्तु उसको नही पाया।
एक घंटे तक मै वहाँ रुका
पर कहीं नही दिखी वो
सोचा घर जाकर देख लूँ
शायद वो आप निकल गयी हो।
बाहर निकला तो देखा तो
प्रत्यक्ष थी मेरी ‘माया’
खुशी से वो चीख उठी
और मुझको गले लगाया।
बुधवार, 17 सितंबर 2008
जल का महत्व
(राहुल जैन)
जैन धर्म का महत्व
जैन का अर्थ है जिसने स्वयं को जीत लिया और धर्म का अर्थ है जिस वस्तु का जो स्वभाव है उसे वेसा ही मानना धर्म है। जैन धर्म में दस धर्म का बहुत महत्व है इस दस धर्म को एक-एक दिन में बांटकर उसे भादव सूदी 5 से 14 तक विषेश मनाया जाता है इसमें प्रथम दिन में उत्तम क्षमा से षुरू होकर उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम षौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम अकिंचन एवं उत्तम बृहमचर्य है।
(राहुल जैन)
मंगलवार, 16 सितंबर 2008
पाठशाला
सिंगापुर या भारत?
सोमवार, 15 सितंबर 2008
आनन अर्बोर के पहले हफ्ते
मैं असल में काफ़ी खुश हूँ कि मैं यहाँ हूँ और मुझे यकीन हैं कि दो - तीन महीनों में मेरी दूसरे लोगों से दोस्ती जम जायेगी और मैं उत्सुकता से अगले हफ्तों की इंतज़ार करूंगा
रविवार, 14 सितंबर 2008
आतंकवाद
तेरह सितम्बर दो हजार आठ को दिल्ली मे पाँच ज़बरदस्त बम विस्फोटों ने त्राही-त्राही मचा दी। इन धमाकों के कारण इक्कीस बेकसूर लोग मारे गए और सौ से अधिक लोग बुरी तरह घायल हुए। इंडियन मुजाहिद्दीन नाम के आतंकवादी संगठन ने इन धमाकों के लिए ज़िम्मेदारी ली है।
मेरा पूरा परिवार दिल्ली मे रहता है। जैसे ही मैने बम विस्फोट की खबर सुनी, मेरा मन घबरा गया। खबर मिली थी कि धमाके अधिक आबादी वाले इलाकों में हुए थे। मैने तुरन्त अपनी माँ को फोन लगाया, परन्तु किसी कारण फोन लग नही रहा था। चिंतित होकर मैने लगतार पंद्रह मिनट तक फोन लगाया। ऐसी स्थिती मे एक क्षण भी अर्सा लगता है। अंत मे माँ से बात हो ही गयी और पता चला कि घर मे सब लोग ठीक हैं।
आतंकवादियों की कुछ माँगे होती हैं। वे चाहते हैं कि लोग उनकी माँगों को पूरा करें। वे सोचते हैं कि इन हादसों द्वारा उनकी आवाज़ सामाज तक पहुँचती है और लोग उनकी बात सुन्ने के लिए राज़ी हो जाते हैं। परंतु, उनकी सोच बिलकुल गलत है। इन हादसों से सामाज मे भय और आतंकवादियों के प्रति घृणा पैदा होती है। आतंकवादियों का उद्देश बीच मे कहीं खो जाता है। अंत मे बेकसूर लोगों को ही हानि पहुँचती है।
हिन्दुत्व - हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति अथवा जीवन दर्शन है जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को परम लक्ष्य मानकर व्यक्ति या समाज को नैतिक, भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के अवसर प्रदान करता है। हिन्दू समाज किसी एक भगवान की पूजा नहीं करता, किसी एक मत का अनुयायी नहीं हैं, किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित या किसी एक पुस्तक में संकलित विचारों या मान्यताओं से बँधा हुआ नहीं है। वह किसी एक दार्शनिक विचारधारा को नहीं मानता, किसी एक प्रकार की मजहबी पूजा पद्धति या रीति-रिवाज को नहीं मानता। वह किसी मजहब या सम्प्रदाय की परम्पराओं की संतुष्टि नहीं करता है। आज हम जिस संस्कृति को हिन्दू संस्कृति के रूप में जानते हैं और जिसे भारतीय या भारतीय मूल के लोग सनातन धर्म या शाश्वत नियम कहते हैं वह उस मजहब से बड़ा सिद्धान्त है जिसे पश्चिम के लोग समझते हैं । कोई किसी भगवान में विश्वास करे या किसी ईश्वर में विश्वास नहीं करे फिर भी वह हिन्दू है। यह एक जीवन पद्धति है; यह मस्तिष्क की एक दशा है। हिन्दुत्व एक दर्शन है जो मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसकी मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकता की भी पूर्ति करता है। इसी को हिन्दुत्व कह्ते हैं ।
गुरुवार, 11 सितंबर 2008
दिल्ली मे हमारा शीला सिनेमा के नाम से सिनेमा घर है, जिसका मेरे दादाजी ने मेरी दादी के बाद नामकरण किया। वहाँ ज़्यादातर हिंदी पिकचरें ही चलती है। इसी कारण मै हिंन्दी पिकचरों मे बहुत रुची लेता हूँ।
मेरे अनुसार 'शोले' दुनिया की सबसे श्रेष्ठ पिकचरों मे से एक है। निर्देशन एवं अभिनय मे कोई खोट नही है। यदि आप ने अभी तक यह पिकचर नही देखी हो, तो मेरी राय माने और जल्द से जल्द इसे देखने का प्रय्त्न कीजिए।