गुरुवार, 27 नवंबर 2008

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर

भारतीय क्रिकेट की शान व विश्व के नम्बर एक बल्लेबाज का रूतबा रखने वाले मास्टर बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ने बहुत ही कम समय व उम्र में क्रिकेट में ऐसे रिकार्ड बना डाले है जिन्हे तोडना इतना आसान नही था। रन बनाने व नये कीर्तिमान बनान की भूख अभी उनकी मिटी नही है। क्रिकेट इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर वे अपना नाम दर्ज कर चुके हैं। सन् 1989 में अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में सचिन का कदम रखना तमाम भारतीयों के मस्तिष्क आज भी कैद हैं। बीते वक्त में हमेशा भारतयी की उम्मीदों की पतवार सचिन का बल्ला ही बना है। यही वजह है कि आज भी सचिन ने कहा था कि-मै आगे खेलना और सिर्फ खेलना चाहता हॅू। मै अब तक जो चाहता रहा वह मुझे मिलता रहा। क्रिकेट के बिना मै जीवन की कल्पना भी नही कर सकता।

भारतीय क्रिकेट की शमां रोशन करने वाले तेंदुलकर महज एक बेमिसाल क्रिकेटर ही नही बल्कि देश के क्रिकेट प्रेमियों के होठों की मुस्कान भी हैं। उनका बल्ला चलने पर देश पर देश में दीवली सी मनायी जाने लगती है।

संगीत मे लता मंगेशकर को अदाकारी में अमिताब बच्चन को और क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर को जो मुकाम हासिल है मजे की बात यह है कि तीनों-लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन और सचिन तेंदुलकर एक दूसरे के जबरदस्त फैन है।

मदर टेरेसा

यूगोस्लानिया के स्कोपजे नामक एक छोटे से नगर में मदर टेरेसा का जन्म हुआ था। बारह वर्ष की अल्प आयु में इन्होने अपने जीवन का उद्देश्य सोच लिया था। मानव का प्रेम एक ऐसी सर्वोतम भावना है जो उसे सच्चा मानव बना सकती है। मानवता के प्रति पे्रम को देश, जाति या धर्म की परिधि में नही बाॅधा जा सकता है। व्यक्ति के मन में यदि सच्ची ममता, करूणा की भावना हो तो वह अपना जीवन सेवा में समार्पित कर देता है विश्व में मानव की निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाली अनेक विभुतियों में से मदर टेरेसा सर्वोच्च थी।

अठ्ठारह वर्ष की आयु में नन बनने का निर्णय कर लिया अनाथ तथा विकलांग बच्चों के जीवन को प्रकाशवान करने के लिए अपनी युवावस्था से जीवन के अंिन्तम क्षणों तक उन्होने प्रयास किया सन् 1997 में उन्होने इस दुनिया से बिदाई ले ली।

पीड़ितो की तन-मन से सेवा करने वाली मदर टेरेसा आज हमारे बीच नही है लेकिन हमें उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुए अनाथ, असहाय, बीमारों की सेवा का संकल्प लेना चाहिए।

होली -रंग और उमंग का त्योहार

भारत देश में मनाये जाने वाले धार्मिक व सामाजिक त्यौहारों के पीछे कोई न कोई घटना अवश्य जुड़ी होती हैं। रंगों का त्यौहार होली धार्मिक त्यौहार होने के साथ-साथ मनोरंजन का उत्सव भी है। है। होली के लिये प्राचीन कथा है कि दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने अपनी प्रजा को भगवान का नाम लेने की मनाही का आदेश दिया था। किन्तु उसके पुत्र प्रहलाद ने आदेश का उल्लघंन किया तो पिता ने उसकों मार देने के लिये अपनी बहन होलिका के साथ षंड़यन्त्र कर पुत्र को मारना चाहा। परन्तु प्रभु की कृपा से प्रहलाद का बाल बाका न हो सका। उसी दिन को प्रत्येक वर्ष होलिका दहन के रूप मंें मनाया जाता हैं। होली भारत का एक ऐसा पर्व है जिसे देश के निवासी सभी सहर्ष मानते है रंगों के इस अनूठे जस्न में हिन्दूओं केे साथ मूस्लमान भी शामिल होते है।

दूसरे दिन प्रातः आठ बजे से गली-गली में बच्चे बडे़ रंग एवं पानी से हुड़दंग शुरू कर देते है। सभी एक दूसरे पर रंग डालते है तथा बाद में गुलाल लगा कर गले मिलते हैं। तथा होली की बधाई देतें है। अच्छे पकवान तथा मिठाई स्वयं भी खाते है और दूसरे को खिलाते हैं तथा आपस में भी मिठाई का अदान प्रदान करते हैं

वृद्ध लोग भी इस त्यौहार पर जवान हो उठते हैं। कई लोग भांग का सेवन करते है। उनके मन में उंमग व उत्सव का रंग चढ़ जाता हैं वे आपस में बैठकर गप-शप व ठिठोली में मस्त हो जाते हैं तथा ठहाके लगा कर हॅसते है। अपराहन दो बजें तक फाग का खेल समाप्त हो जाता हैं लोग नहा धोकर शाम को मेला देखने चल पड़ते है। अन्तिम मुगल बादशाह अकबरशाह सानी और बहादुर शाह जफर खुले दरबार में होली खेलने के लिये प्रसिद्ध थें।

मंगलवार, 25 नवंबर 2008

संगीत

संगीत - दुनिया में शायद यह एक चीज़ है जो विचारों में इतना विभाजन लाता है| मनुष्य गाने क्यों सुनता है ? कुछ लोग कहेंगे कि वे अपने मन के सभी परेशानियों या तकलीफों को दूर करने के लिए ऐसे करते हैं तो कुछ कहेंगे कि गाने सुनकर उनको प्रेरणा मिलती है| इन वजहों पर पूरे दिन हम वाद विवाद कर सकते हैं और हमें ठीक से जवाब नहीं मिलेगा लेकिन अगर एक सरीले कारण से इस चर्चा को बंद कर सकते हैं तो वो होगा - लोग गाने सुनते हैं क्योंकि उनको अच्छा लगता है|

देखें तो हमारी ज़िन्दगी के हर क्षेत्र में संगीत का प्रभाव है| ज़रा सोचिये- अगर आपको कल "लगान" या फिर "कल हो न हो" बिना गानों के देखना पड़े, क्या आप इन फिल्मों से उतना ही मज़ा ले पाएंगे जितना संगीत के साथ लिया था| मैं आपके उत्तर का इंतज़ार ही नहीं करूंगा क्योंकि हम सभ को मालूम है कि यह नामुमकिन है| संगीत में वह शक्ति है जो बहुत कम चीज़ों मैं होती है| यह एक चीज़ है जिसे दुनिया का हर व्यक्ति निह्स्संकोच होकर सुनता है और सुनते ही भावुक हो जाता है| संगीत एक बन्दे के शरीर के हर अंग को नचा सकती है या फिर उसके दिल को हजारों टुकडों में तोड़ सकती है| प्रोत्साहन, हिम्मत, खुशी, नाराज़गी, उल्लास सभी भावनाएं, संगीत के कारण, तेज़ी से हमारे हर सोच को ग्रहण कर सकती हैं |

हमें उसका शुक्रगुजार होना चाहिए जिसने हमें ऐसे सुहावने चीज़ का मज़ा लेने का मौका दिया है और अगली कुछ सदियों के लिए इसकी खूबसूरती को और गहरे रूप से समझने की कोशिश करनी चाहिए|

बर्फ

कमरे में बैठा मैं सोच रहा हूँ की मैं अगले पाँच महीने इस मौसम में कैसे बिताऊंगा| आज पहली बार बर्फ का असली रूप देखा और एक तगडे जवान मर्द होने के बावजूद मैं कक्षा जाने के लिए बिल्कुल उत्सुक नहीं था| अठारह साल सिंगापुर में रहने के बाद आप शायद मुझे ऐसे सोचने के लिए माफ़ कर देंगे| वहाँ तो तापमान पच्चिस डिग्री के नीचे कभी गिरता ही नहीं है| मुझे याद है, पिछले साल एक बार नवम्बर के महीने में अचानक तापमान बाईस डिग्री तक गिर गया था| मैं बढाकर बात नहीं कर रहा लेकिन बहुत से लोग कम्बल में चुप गए या फिर सुबह सुबह जाकट के निचे गर्माहट का मज़ा ले रहे थे| अभी आप अंदाजा लगा सकते हैं की मेरे लिए यहाँ जीना कितना कठिन है?

मगर दिल से पूछूँ तो शायद अलग सा जवाब मिलेगा| सफ़ेद, मुलायम, मन को बहलाने वाली बर्फ कभी देखी ही नहीं है मैंने| कहते हैं ज़िन्दगी में हर चीज़ का अनुभव एक बार तो लेना ही चाहिए और देखें तो असल में यह इतना भी बुरा नहीं है| मैं तो इस मौसम के लिए पूर्ण रूप से तैयार हूँ और अपनी मोटी चमड़ी की सहायता से दिसम्बर के अंत तक आराम से पहुँच जाऊंगा| दिन के कार्यों में शायद तब तकलीफ होगी, जब मैं बर्फ के कारन धरती को अपने पैरों से छू ही नहीं पाऊँगा या फिर जाकट पहने हुए भी बाहर नहीं जाना चाहूँगा| अभी के लिए मुझे मौसम का मज़ा ही लेना चाहिए क्योंकि बहुत से लोगों ने कहा है कि अगर इससे मुझे परेशानी हो रही है तो फरवरी में मैं आश्चर्यचकित रह जाऊँगा|

मंगलवार, 18 नवंबर 2008

मिशीगन फुटबोल

इस शनीवार मिशीगन फुटबोल ओहईओ के सात खेल रहे है. ओहईओ हमारे प्रतियोगी है. इस साल हमारे फुटबोल टीम इतने अच्छे नही कर रहे हैं. इस लिए, बहुत सारे लोग नही मानते के हम जीतेंगे. लेकिन मुझे मानती है. मुझे विश्वास है कि हम इस शनिवार ओहईओ स्टेट पराजित करेंगे. जो भी हो जाए, मिशीगन फुटबोल एक बोल में नही खेलेंगे. हम बहुत खेल में हरे और अब हम एक बोल में नही खेल सकते. लेकिन, अगले साल सब कुछ बदलेंगे. अगले साल लोग कहे रहे है कि हम बहुत खेल जीतेंगे. मुझे, और मेरे सरे परिवार एक मिशीगन फुटबोल में बहुत विश्वास हैं.

शनिवार, 15 नवंबर 2008

भारतीय शास्त्रीय संगीत

मुझे बचपन से ही भारतीय शास्त्रीय संगीत मे बहुत रुचि रही है। बहुत से प्रसिद्ध संगीतज्ञ, जैसे उसताद अमजद अली खान और पण्डित शिव कुमार शर्मा ने हमारे विद्यालय मे संपादन किया। उनको देखकर मै भी भारतीय संगीत सीखने को प्रभावित हुआ।
जब मेरे सारे मित्र पश्चिमी संगीत सीख रहें थे, मै तबला और हिन्दुस्तानी चिकारा सीख रहा था। पश्चिमी संगीत के विभाग मे सौ से अधिक छात्र थे, परन्तु हिन्दुस्तानी संगीत के विभाग मे केवल नौ या दस छात्र थे।
तबला मे मेरी बहुत रुची थी। मैने छः सालों के लिए तबला सीखा। तबला बजाने से जो लय और गत का अंदाज़ा मिलता है, वो किसी और संगीत वाद्य से नही मिलता। अपने अध्यापक के साथ तबले पर जुगलबंदी रचाते समय बहुत आनंद मिलता था।
मैने हिन्दुस्तानी चिकारा भी बजाना सीखा। चिकारे को सही तकनीक से बजाने के लिए बहुत रियाज़ और अनुशासन की ज़रुरह होती है, परन्तु जब ये वाद्य सुर मे बजता है, तो अधिक आनंद मिलता है।
आज भारतीय शास्त्रीय संगीत धीरे धीरे गायब हो रहा है। मै अपने जीवन मे इसे जीवित रखने का पूरा प्रयत्न करूँगा।

सर्दी का मौसम

मिशिगन आने से पहले, बहुत से लोगों ने मुझे यहाँ के मौसम के बारे मे चेतावनी दी थी। मेरे बड़े भाई ने भी अपनी कालेज की पढ़ाई मिशिगन से ही पूरी की। वे मुझे बार-बार कहते रहें कि एसी जगह मे पढ़ना चाहिए जहाँ अच्छा मौसम हो। मैने उनकी बातों पर ज़्यादा ध्यान नही दिया, क्योंकि मुझे लगता था कि सर्दी को झेलना ज़्यादा मुशकिल नही हो सकता है। मै गलत था।
एन आर्बर मे सर्दी के समय, शाम के पाँच बजे ही बाहर अंधेरा हो जाता है। दिन बहुत छोटे हो जाते हैं और राते बहुत लम्बी। दिन मे भी, घने बादलों के कारण सूरज दिखाई नही देता। तापक्रम अधिकतर 0 सेल्सियस से नीचे ही रहता है। दिन पर दिन, बर्फ पड़ती है। शुरू शुरू मे बर्फ बहुत ही सुंदर लगती है, परन्तु जैसे समय बीतता जाता है,बर्फ पर चलना ही मुश्किल हो जाता है। कभी कभी इतनी ठंडी हवा चलती है कि पैदल चलते समय आँखों को खुला रखना ही मुश्किल हो जाता है।
सर्दी के महीनों मे मै बहुत ही दुखी हो जाता हूँ। घर की बहुत याद आती है और घर लौटने को दिल तड़पता है। कभी कभी मै सोचता हूँ कि मुझे अपने भाई की चेतावनी पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए था।

शनिवार, 8 नवंबर 2008

दीपावली प्रकाश पर्व

हिन्दू धर्म में सभी देशांे, प्रदेशांे गाँवांे मंे मिलाकर बहुत से पर्व है परन्तु इन पर्वांे मंे मुख्य पर्व होली, दशहरा, और दीपावली हैं। हमारे जीवन में प्रकाश फैलाने वाला दीपावली का त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। अमावस्या की अंधेरी रात दीपकांे व मोमबत्तियांे के प्रकाश से जगमगा उठती हैं। एक प्रकार से अंधेरे से उजाले की ओर जाने की रात है। खेतांे मंें खड़ी धान की फसल भी तैयार हो जाती है।
इस पर्व की यह भी विशेषता है कि जिस सप्ताह मंे यह त्यौहार आता है उसमंे पाँच त्यौहार होते हैं। इसी वजह से सप्ताह भर लोगांे में उल्लास व उत्साह बना रहता है दीपावली से पहले धनतेरस पर्व आता हैे मान्यता है कि इस दिन कोई न कोई बर्तन अवश्य खरीदना चाहिए इस दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है, इसके बाद आती है छोटी दीपावली, फिर आती है दीपावली। इसके अगले दिन गोर्वधन पूजा तथा अन्त मंे आता है भैया दूज का त्यौहार।
अन्य त्यौहार की तरह दीपावली के साथ भी कई धार्मिक तथा ऐतिहासिक घटनाएँ जुड़ी हैं। समुद्र-मंथन करने से प्राप्त चैदह रत्नांे मंे से एक लक्ष्मी भी इसी दिन प्रकट हुई थीं। इसके अलावा जैनमत के अनुसार तीर्थकर महावीर का महा निर्वाण भी इस दिन हुआ था। भारतीय संस्कृति के आदर्ष पुरूष श्रीराम लंका नरेश रावण पर विजय प्राप्त कर सीता, लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटे थे। भगवान श्रीराम के स्वागत के लिए घरांे को सजाया एवं रात्रि मंे दिये सजाये गए।
सामान्यतया इस पर्व के आने से माह भर पहले भी घरांे की अपनी साफ-सफाई रंग-रोगन करते हैं। व्यापारी अपनी दुकानंेे सजाते हैं। बच्चे अपनी इच्छानुसार आतिशबाजी करते हैं।
इस दिन रात्रि के समये लक्ष्मी-पूजन होता है। इस दिन नये कपड़े पहनकर सज-धजकर निकलते हैं। लोग अपने ईष्ट मित्रांे के यहाँ मिठाई का आदान-प्रदान करते हैं एवं दीपावली की शुभ कामनाएँ लेते-देते हैं।

कम्प्यूटर-आज की आवश्यकता

20वीं सदी मंे कम्प्यूटर क्षेत्र मंे आयी क्रान्ति के कारण सूचनाआंे की प्राप्ति और इनके संसाधन मंे काफी तेजी आयी है। इस क्रान्ति के कारण ही हर किसी क्षेत्र का कम्प्यूटरीकरण संभव हो पाया है। स्थिति यह है कि माइक्रोप्रोसेसर के बिना अब किसी मशीन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पिछले चार दशकांे में कम्प्यूटर की पहली चार पीढ़ियाँ क्रमशः वैक्यूम ट्यूब तकनीकी, ट्राँजिस्टर व पिं्रटेड सर्किट तकनीकी, इंटीग्रेटेड सर्किट तकनीकी और वेरी लार्ज स्केल इंटीग्रेटेड तकनीकी पर आधारित थी। चैथी पीढ़ी की तकनीकी मंे माइक्रोप्रोसेसर का वजन कुछ ग्राम तक ही रह गया। आज पाँचवी पीढ़ी के कम्प्यूटर तो कृत्रिम बुद्धि वाले बन गए हैं। वास्तव मंे कम्प्यूटर एनालाॅग या डिजिटल मशीनंे ही हैं। अंकांे की एक सीमा मंे भौतिक भिन्न मात्राआंे में परिवर्तित करने वाले कम्प्यूटर एनालाॅग कहलाते हैं। जबकि अंकांे का इस्तेमाल करने वाले कम्प्यूटर डिजिटल कहलाते हैं। एक तीसरी तरह के कम्प्यूटर भी हैं, जो हाइब्रिड कहलाते हैं। इनमंे अंकांे को संचय और परिवर्तन डिजिटल रूप मंे होता है। लेकिन गणना एनालाॅग रूप मंे होती है।
विज्ञान क्षेत्र मंे सूचना प्रौधोगिकी का आयाम जुड़ने से हुई प्रगति मंे हमंे अनेक प्रकार की सुविधा प्रदान की है। इनमंे मोबाइल फोन, कम्प्यूटर तथा इन्टरनेट का विशिष्ट स्थान हैं। कम्प्यूटर का विकास गणना करने के लिए विकसित किये यंत्र कैल्क्युलेटर से जुड़ा है। इससे जहाँ कार्य करने में समय कम लगता है, वहीं मानवश्रम मंे भी काफी कमी आयी है।
वर्तमान मंे कम्प्यूटर संचार का भी एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है। कम्प्यूटर नेटवर्क के माध्यम से देश के प्रमुख नगरांे को एक दूसरे के साथ जोड़े जाने की प्रक्रिया जारी है। भवनांे, मोटर-गाड़ियांे, हवाई जहाज आदि के डिजाइन तैयार करने मंे कम्प्यूटर का व्यापक प्रयोग हो रहा है। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में तो कम्प्यूटर ने अद्भुत कमाल कर दिखाया है। इसके माध्यम से करोड़ांे मील दूर अंतरिक्ष के चित्र लिये जा रहे हैं। साथ ही इन चित्रांे का विश्लेषण भी कम्प्यूटर द्वारा किया जा रहा है। कम्प्यूटर नेटवर्क द्वारा देश-विदेश को जोड़ने को ही इन्टरनेट कहा जाता है।

''विद्यार्थी एवं अनुशासन का महत्व''

प्रारम्भ से ही हमारा जीवन यदि अनुशासित होगा तो हम तमाम समस्याआंे का समाधान एक स्वस्थ्य एवं निरपेक्ष्य तथ्यांे पर भविष्य मंे कर सकते हैं। अन्यथा समस्याएँ ज्यों की त्यांे बनी रहेगी। चाहंे कितनी सरकारंे क्यांे न बदल दी जाये, चाहंे कितनी पीढ़ियाँ क्यांे न गुजर जाये। यदि देश की विभिन्न समस्याआंे की गहराई में जाकर देेखें तो उसमंे से कुछ बातंे ऐसी मिलती हैं, जो देश की विभिन्न समस्याआंे को जन्म देती हैं। जिनमंे आर्थिक एवं राजनैतिक महत्व के साथ देश की राष्ट्रभाषा, धर्म, संस्कृति और खान-पान के आधार पर ही लोगांे मंे अनुशासन तोड़नें मंे अथवा समस्याएँ खड़ी करने के लिए प्रेरित होने के प्रसंग मिलते हैं। देश में व्याप्त इन समस्याआंे के निराकरण के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को अनुशासनप्रिय होना चाहिए। अनुशासनप्रिय होने के लिए हमंे स्वप्रेरणा के आधार पर कार्य करना होगा। वैलंेटाइन के अनुसार-अनुशासन बालक की चेतना का परिष्करण है। बालक की उत्तम प्रवृत्तियांे और इच्छाआंे को सुसंस्कृत करके हम अनुशासन के उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं।
अनुशासन से अभिप्राय नियम, सिद्धान्त तथा आदेशांे का पालन करना है। जीवन को आदर्श तरीके से जीने के लिए अनुशासन मंेे रहना आवश्यक है। अनुशासन का अर्थ है, खुद को वश में रखना। अनुशासन के बिना व्यक्ति पशु के समान है। विद्यार्थी का जीवन अनुशासित व्यक्ति का जीवन कहलाता है। इसे विद्यालय के नियमों पर चलना होता है। शिक्षक का आदेश मानना पड़ता है। ऐसा करने पर वह बाद मंे योग्य, चरित्रवान व आदर्श नागरिक कहलाता है। विद्यार्थी जीवन मंे ही बच्चे मंे शारीरिक एवं मानसिक गुणांे का विकास होता है जिसे उसका भविष्य सुखमय बनाने के लिए अनुशासन मंे रहना जरूरी है। किसी काम को व्यवस्था के साथ-साथ अनुशासित होकर करते हैं तो उस कार्य को करने मंे कोई परेशानी नहीं होती। इसके अलावा कार्य करते समय भय, शंका एवं गलती होने का डर नहीं होता है। इसलिए सफलता प्राप्त करने के लिए अनुशासन मंे रहना जरूरी है। यदि हम अपने वातावरण को देखंे तो पता चलता है कि प्रकृति एवं प्राकृतिक वस्तुएँ भी अनुशासन मंे हैं।

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

चुनाव का दिन

आज चुनाव का दिन है. आज एक इतिहासिक दिन होगा क्योंकि जो भी जीत जायेंगे, इतिहासिक होगा. अगर बराक औबामा जीत जाए तो फिर वह पहला काला अधिपति होंगे. अगर जोन मकैन जीत जाए तो फिर उसका उप्रष्टापति पहली लड़की होगी. बराक औबामा और जोन मकैन बहुत अलग विचार हैं. औबामा चाहिए कि और लगाने होने चाहिए कीमती लोगो के लिए. मकैन चाहते कि लगाने कमी हो जाए. खर्च करना के लिए, बराक औबामा बुरा खर्च प्रोग्राम को फेंकना चाहिए. जोन मकैन आय बंधन चाहिए. आरोग्यता रक्षा के लिए, बराक औबामा असीम आरोग्यता रक्षा चाहिए और जोन मकैन चाते है ही लोग जिस आरोग्यता रक्षा चाहिए, मिले. ईराकी लडाई के लिए, बराक ओबामा जल्दी निकल जाना चाहिए और जोन मकैन लडाई करना चाहिए. जो भी जीत जाए, इस चुनाव बहुत इतिहासिक है.

दिल्ली

दिल्ली – भारत की राजधानी और सब्से ऐतिहासिक शहर । दिल्ली राजधानी है इस वजह से तो काफी लोकप्रिय तो है ही , पर इसका इतिहास ही इसकी पहचान है । दिल्ली का इतिहास महाभारत तक जाता है जहां यह इन्द्रपस्थ के नाम से जानी जाति थी । उस्के बाद अनेक अलग –अलग राज्यों ने इसे अपनी सलतनत की राजधानी बनाया था , शहा-जहान्से लेकर हुमायुन तक अलग-अलग राजाओं ने अपने महल और कबर इतने सुन्दर तरीके से बन्वाए की आज तक इन्को देख्नने लाखों लोग आते हैं । इन्में से कुछ मशहूर ऐतिहासिक स्थल हैं लाल किला , पुराना किला , क़ुतब मिनार । मेहरौलि और चान्दनी चौक के आस पास वाले ज़िलों मे अन्य और भी ऐतिहासिक इमारितें दिख्ती हैं । इन इमारतों के स्थापना मुघल सन्तनत के राजाओं ने अपने – अपने समय कर्वाइ थी।

रविवार, 2 नवंबर 2008

दूरदर्शन का प्रभाव

दूरदर्शन समाज को बहुत प्रभावित करता है। भारत के इतिहास मे यह साफ़ दिखता है। 1987 मे जब रामानंद सागर की रामायण दूरदर्शन पर दिखाई जाती थी, तो दस करोड़ लोग अपना सारा काम काज छोड़कर उसे देखते थे।
1990 के बाद केबल टी वी द्वारा पश्चिमी चैनल दूरदर्शन पर दिखने लगे। इस समय बच्चों पर पश्चिमी प्रभाव बढ़ने लगा। वे पश्चिमी संस्कृति को अपनाने लगे। दुख की बात यह है कि पश्चिमी सभ्यता के गुणों को अपनाने के बजाए, भारतीय शहरों मे रहने वाले बच्चों ने उनकी बहुत सी बुरी आदतें भी अपनाई हैं।
1995 के बाद एकता कपूर के बहुत से कार्यक्रम दूरदर्शन पर दिखाई देने लगें, जो ज़्यादातर साँस-बहू के बुरे रिश्तों के विषय पर बनाएँ जाते हैं। मेरी राय मे ये कार्यक्रम समाज मे बुरे खयालात फैलाते हैं।
आज कल भारत मे समाचार चैनलों की गुणता बहुत गिर गई है। असली खबर पर कम और फ़िल्म कलाकारों की ज़िंदगी पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाता है। अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान के हर कदम के बारे मे सब को खबर रहती है, परन्तु दुनिया की आर्थिक स्थिती के बारे मे केवल गिने चुने लोग जानते हैं। मेरी राय मे भारतीय मीडिया को अपनी ताकत पहचाननी चाहिए और उस ताकत को समाज के भले के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।

शनिवार, 1 नवंबर 2008

मिशिगन मे दिवाली

शुक्रवार, 31 अक्तूबर को भारतीय विद्यार्थी संगठन ने दिवाली का उत्सव मिशिगन यूनियन मे मनाया। इस साल तकरीबन 200 लोग दिवाली मनाने आए। शाम की शुरुआत लक्षमी पूजा से की गयी। पूजा करने के बाद, सभी लोगों ने फुलझड़ियाँ जलाईं। कुछ लोगों ने भारतीय नृत्य, नाटक और सगीत का प्रदर्शन किया। हमारी हिन्दी कक्षा के प्रशांत जी संगीतकारों के समूह मे शामिल थे। उस समूह का नाम ‘मेज़ मिर्ची’ है। मेज़ मिर्ची ने ‘आकपैला’ तरीके से गाना गाया, यानि उन्होंने किसी संगीत वाद्य का इस्तेमाल नही किया और सारे संगीत वाद्यों की आवाज़ मुँह से ही निकाली। उनका प्रदर्शन बहुत ही मनोरंजक था। इस प्रदर्शन के पश्चात, सारे मेहमानों ने मिल जुलकर लज़ीज़ भारतीय खाना खाया।
पिछले तीन सालों से मै भारतीय विद्यार्थी संगठन के शासक मंडल पर रहा हूँ। दिवाली के नियोजन मे लगभग 2 महीने लगते हैं। विश्वविद्यालय के कर्मचारियों से फुलझड़ियाँ जलाने की आज्ञा लेने मे बहुत समय लग जाता है। चूंकि हमे इस साल भारतीय रेस्टोरेन्ट से खाना लाने की आज्ञा नही मिली, हमे विश्वविद्यालय के बावर्चियों को भारतीय खाने को पकाने का तरीका सिखाना पड़ा। यह बहुत ही कठिन कार्य था, परंतु, अंत मे उन्होंने काफ़ी अच्छा खाना बना ही लिया। सभी मेहमानों को यह उत्सव बहुत ही अच्छा लगा, और उनको खुश देख मुझे बहुत प्रसन्नता हुई।